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” वैवाहिक जीवन मे गुरु का विपरीतक प्रभाव “
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जातक परिजात मे वर्णन है कि यदि पुरुष की जन्म पत्रिका मे वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने वाले गुरु यदि नीच राशि मे सप्तम भाव मे हो तो वे स्त्री का दूसरा विवाह अवश्य कराने वाले सिद्ध होते हैं। परन्तु पुरुष की जन्म पत्रिका में यह योग हो तो उसके जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। कम से कम वैवाहिक जीवन में कठिनाइयां अवश्य ही बनी रहती हैं।
नीचे गुरौ मदनगे सतिनष्टदारो
मीने कलत्रभवने रविजे तथैव।
मन्दादराशिनवभागगते सुरेज्ये
जारो भवेदिनसुतारसमन्विते वा।।
आइये कमान्डर नानावती की जन्म कुण्डली मे इस योग को घटित होते देखते है:-
कर्क लग्न की कुण्डली मे गुरु सप्तम भाव मे मकर राशि में अर्थात अपनी नीच राशि मे बैठा है।सूर्य बुध दशम भाव मे, शनि और शुक्र एकादश भाव मे, चन्द्रमा द्वादश भाव में, तथामंगल षष्ठ भाव में, एवं राहु तृतीय भाव में है।
इस आफिसर की विदेशी स्त्री किसी जवान व्यापारी से आसक्त हो गई और संबंध स्थापित कर लिये , जानकारी होने पर कमांडर ने उसकी हत्या कर दी। यहां जन्म कुण्डली मे बना यह योग पूरी तरह घटित हो गया, दूसरा संबंध भी बना और जीवनसाथी की मृत्यु भी हुई।
यदि गुरु मकर या कुंभ मे, अर्थात शनि नवांश में, और मंगल के नवांश मेष या वृश्चिक मे हो तथा शनि मीन राशि में सप्तम मे स्थित हो तो भी वैवाहिक जीवन में कठिनाईयां आती हैं।
इसी बात की पुष्टि फलदीपिका ग्रंथ में मंत्रेश्वर जी भी करते हैं।