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हीरा ( Diamond )
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यह सुप्रसिद्ध रत्न है जो शुक्र ग्रह की मणि माना गया है। इसे संस्कृत मे वज्र ,भिदुर,कुलिश,पवि नामों से पुकारा जाता है। अरबी-फारसी में अल्मास कहा जाता है। यह तीन प्रकार का होता है।
१- नरजाति हीरा:- जो हीरा अष्टकोण या षडकोण तथा अत्यंत चमकदार तथा इन्द्र धनुष के समान प्रकाशमान तथा लघु हो, वह पुरुष जाति का हीरा होता है।
” अष्टास्रं वाष्टफलकं षड्कोणमति भासुरम्।
अम्बुदेन्द्र धनुर्वारितरं पुंबज्रमुच्यते।। “
२- स्त्रीजाति का हीरा :- जो हीरा चिपिटाकार,लम्बा तथा गोल हो,वह स्त्री जाति का हीरा होता है
” तदेव चिपिटाकारं स्त्रीवज्रं वर्तुलायतम्।।”
३- नपुंसक हीरा :- जोहीरा गोल तथा कुंठित(मुड़े कोणों वाला) तथा भार मे अपेक्षाकृत भारी हो,उसे नपुंसक हीरा मानते हैं।
” वर्तुलं कुण्ठ कोणाग्रं किन्चिद्गुरु नपुंसकम् “
-> इसमें पुरुष जाति का हीरा सबके लिए, परन्तु स्त्री जाति का हीरा सिर्फ स्त्रियों के लिए फलदायी होता है।
-> पुरुष जाति का हीरा श्रेष्ठ, स्त्री जाति का हीरा मध्यम, एवं नपुंसक जाति का हीरा अधम होता है।
वज्रं च त्रिविधं प्रोक्तं नरो नारी नपुंसकम्
पूर्व-पूर्वमिहश्रेष्ठं रसवीर्य विपाकतः।।
शुद्ध हीरे की पहिचान― हीरा विशुद्ध कार्बन का परिवर्तित रुप है। खोटा हीरा वजन मे भारी, शीध्रतापूर्वक विद्ध होने वाला, पतली धारावाला तथा शान पर घिसने से शीघ्र घिसने वाला होता है। इसके विपरीत जो असली हीरा होता है, वह कठिनता से वेधा जाता है।
रत्न परीक्षा :- हीरे को सूर्य के प्रकाश में थोड़ी देर रखकर फिर यदि अंधेरे कमरे में रखा जाए तो वह सतरंगा प्रकाश बिखरने लगता है।
-> एकदम गरम दूध में यदि हीरा डाल दिया जाए और दूध तुरंत ठंडा हो जाए तो हीरा सच्चा समझना चाहिए।
-> गरम घी मे यदि हीरा डाल दिया जाय, तो घी जमने लगता है।
-> असली हीरे में प्रविष्ट हुआ प्रकाश लगभग पूरा भीतर से लौट आता है।
-> अंधेरे में असली हीरा जुगनू की भांति चमकता है।
कूडाय दूय परिक्खा गुरुविन्नाया य सुहम धाराय।
साणायं सुह घसिया दुह घसिया रयण जाइभवा।।
हीरे के औषधीय गुण :- हीरा आयु को बढ़ाता है। यह शरीर की जीविनीशक्ति का संवर्धन करता है। कैंसर जैसे असाध्य रोग को ठीक करने की क्षमता होती है। यह त्रिदोषों को शान्त करता है।यह वाजीकरण रसायन तथा सकल रोग विनाशक है। यह मृत्यु को धकेल देता है।इस प्रकार यह अमृत जैसा ही है।
शुक्रोत्पन्न रोग :- नपुंसकता, वीर्यविकार, अनपत्यता,प्रमेय,प्रदर, दौर्बल्य,नेत्ररोग, शिरोरोग,उन्माद, कामोन्माद,हिस्टीरिया, अपस्मार, श्वांस, कास,हिक्का, मूत्ररोग, अर्श,मधुमेह, स्वप्न दोष,गर्भाशय शैथिल्य, अण्डवृद्धि शूल आदि।
हीरे के प्रयोग की ज्योतिषीय स्थितियाँ :-
१- जब शुक्र नीच राशि का होकर लग्न,सप्तम,या व्यय मे बैठा हो।
२- शुक्र शत्रु दृष्ट होकर नीच का हो तब वह कहीं भी बैठा हो।
३- गोचर मे शुक्र 6,८,12 भाव मे स्थित हो।
हीरा धारण करने की विधि :-
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जिस दिन रोहिणी या चित्रा नक्षत्र के दिन शुक्रवार हो,तब शुक्र की होरा मे सोने की अँगूठी मे न्यूनतम 2 रत्ती भार का हीरा जड़वाकर ” ऊँ शुं शुक्राय नमः ” मंत्र से अभिमंत्रित कर धारण करें।
शुक्र के 11 अंश से 29 अंश तक होने पर कनिष्ठा अंगुली मे धारण करना चाहिए।
विशेष :- पुत्र कामना चाहने वाली स्त्री को हीरा धारण नहीं करना चाहिए।
” न धारयेत् पुत्रकामा नारी वज्रं कदाचन “