January 24, 2019

कर्मफल -भाग 29

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जीवन का उद्देश्य – धर्म, अर्थ , काम, मोक्ष है।
” मोक्ष “
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जीवन का सर्वोपरि उद्देश्य मोक्ष है, मोक्ष का मतलब जीवन रुपी चक्र से दूर हो जाना। अर्थात अब न जन्म होगा और मरण का सवाल ही नहीं।
कहा गया है:- ” पुनरपि जनमम् पुनरपि मरणम् ,पुनरपि जननी जठरे शयनम्
जन्म लेने के लिए मां के गर्भ में आना होगा, जिसकी तुलना कुम्भीपाक नरक् से की गई है, जहां जीव उल्टा लटका रहता और उसे अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं, वह ईश्वर से बार बार प्रार्थना करता है कि हे ईश्वर मैं संसार मे आकर ऐसे कार्य करुंगा कि दुबारा इस नरक मे ( गर्भाशय ) न आना पड़े। परन्तु जैसे ही वह इस संसार में जन्म लेता है, मोह रुपी माया से ग्रसित हो कर ईश्वर से किया वादा भूल जाता है और बार बार जन्म मरण के चक्र मे फँसकर ८४ लाख योनियों में घूमता रहता है ।
मोक्ष के सभी १० साधनों को अब हम जानेंगे।
१- मौन :- इन्द्रियजित होकर वाणी का संयम कर ले, वाणी का संयम होने से मन का संयम हो जाता है। पहले भी हम जान चुके हैं कि मन,प्राण, और वाक मिले रहते हैं, एक का संयम होने से शेष दो का संयम अपने आप हो जाता है। जैसे तिपाई का एक पैर खींचने से पूरा तिपाई आ जाती है। मौन से बढ़कर संसार में कोई तप नहीं। वाणी का प्रयोग संसारिक कामो मे न करें।
२-ब्रह्मचर्य :- मन,प्राण और वीर्य इन तीनो का भी अन्योन्याश्रय सम्बंध है। एक का निरोध हो जाने पर तीनो का निरोध हो जाता है, क्योंकि काम की उत्पत्ति मन से होती है।मन का निरोध हो जाने पर प्राणो और ब्रह्मचर्य का भी निरोध हो जाता है। प्राणों का प्राणायामादि से निरोध होने पर मन और वार्य का निरोध हो जाता है।
केवल वीर्य के उर्ध्वगामी हो जाने पर मन और प्राण अपने आप निरुद्ध हो जाते है।
” यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति “
( कठ १/३/१५ )
३- शास्त्रश्रवण :- निरन्तर सत शास्त्रों का स्वस्थचित्त से श्रवण करते रहो और श्रवण के पश्चात मनन और निदिध्यासन चलता रहे तो शास्त्रश्रवण से मुक्ति हो।
४- तप :- तपस्या से देहाध्यास मिटता है। ज्ञान की जो सात भूमिकाएं बतायी है। तीन के पश्चात आगे ज्यों ज्यों तितिक्षा बढती है, त्यों त्यों उत्तरोतर भूमिकाओं की उपलब्धि होती जायेगी अंत मे ब्राम्ही स्थिति होगी।
जड़ भरत की ५वीं चेतना की अवस्था।
वेद व्यास की ५वीं चेतना की अवस्था।
ऋषभदेव की ६वीं चेतना की अवस्था।
भगवान कपिल देव की माँ देवहूति की ७वीं चेतना थी।
५- अध्ययन :- निरन्तर शास्त्रों का अवलोकन करता रहे, वैसे स्वाध्याय का अर्थ जप है।यह बुद्धि का व्यायाम है, बुद्धि को निरन्तर शास्त्र चिंतन मे निमग्न रखने से वह ब्रह्मावगामिनी बन जायेगी, क्योंकि बुद्धि के समीप ही ब्रह्म है।
‘ यो बुद्धे: परतस्तु सः “
( भगवतगीता)
६-स्वधर्म पालन :- आप जिस वर्ण के हो,जिस आश्रम मे हो अपने अपने वर्ण आश्रम का पालन करता रहे।
शूद्र को गृहस्थ आश्रम का अधिकार है, यदि वो स्वधर्म का पालन करता रहे तो स्वर्ग के सुख भोगने के बाद वैश्य होगा।वैश्य को ब्रह्मचर्य+गृहस्थ दो आश्रमों का अधिकार है।क्षत्रियों को तीन आश्रमों का अधिकार है ऐ ब्रह्मचर्य+गृहस्थ+वानप्रस्थ।
ब्राह्मण को चारो आश्रमों का अधिकार है। संयास लेकर वह ज्ञान से मुक्त हो जायेगा, यदि कुछ कमी रह गयी और मृत्यु हो गई तो ब्रह्म लोक जायेगा, वहां जु उसके ज्ञान की पूर्ति कर देंगे और ब्रह्मा जी के साथ वह विमुक्त बन जायेगा।
७- शास्त्रों की व्याख्या :- शास्त्रों की प्रबल युक्तियों द्वारा युक्ति युक्त व्याख्या करने से भी मुक्ति होती है।
क्योंकि व्याख्या करते समय बुद्धि अत्यंत सूक्ष्म हो जाती है।भगवान तो सूक्ष्मातिसूक्ष्म है, स्थूल बुद्धि वाले स्थूल संसार को ही पा सकते है। उन अणोरणीयान को तो परम सूक्ष्म बुद्धिवाले ही देख सकते ही।
” दृश्यते त्वग्यया बुद्धया सूक्ष्म्या सूक्ष्मदर्शिभिः “
८- एकांत सेवन :- ऐकान्त सेवन ही करे,किन्तु इन्द्रियों को वश मे करके विवशता से नहीं, स्ववश होकर । संसारी कोलाहल से दूर रहकर संसारी लोगों से बिना संसर्ग रखे एकान्त मे रहे। अपने अपने मे ही संतुष्ट रहे तो उसे ब्रह्म का स्पर्श होगा।
” ब्रह्म संस्पर्शमश्नुते “
९- जप :- निरन्तर मन्त्र जप से भी मोक्ष प्राप्त होता है। मन्त्र मे ऋषि, देवता, छन्द तीनो रहते हैं।ऋषि को सिर पर धारण करते हैं, छन्द को मुख मे और देवता को हृदय में।
जिस मंत्र का जप करते हैं उसके अर्थ की भावना भी पीछे से करते हैं, भावना करते करते इष्ट की प्राप्ति होती है, इसीलिए शिवजी ने पार्वतीजी से कहा है;
” जपात सिद्धिर्जपात सिद्धिर्जपात सिद्धिर्वरानने “
१० – समाधि :- यम,नियम,आसन,प्राणायाम प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इन को अष्टांगयोग कहते हैं।
धारणा की परिपक्व अवस्था का नाम ही ध्यान है, और ध्यान की परिपक्व अवस्था समाधी है। समाधि से चित्त एकाग्र होता है। मन मे विक्षेप नही होता, जिससे बुद्धि का आवरण हटकर निरवरण बन जाता है तो समाधि से मोक्षहो जाता है।
व्यक्ति आवागमन के चक्कर से मुक्ति पा जाता है।

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