January 29, 2019

अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति -भाग 34

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अक्षर ब्रह्माण्ड का बीज है।
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अक्षर ही प्रत्यक्ष रूप से वेदरूपी भगवान है। चेतना का स्पंदन ही ध्वनि है जो कभी कभी वाक/बोल के रुप में होती है। सभी अक्षरों में एक ध्वनि का संविधान है जो अपने उद्देश्य से शब्द और उसके अर्थ रुप जुड़ा होता है।
अक्षर पहले विरल,फिर तरल,फिर घन और अंत मे वाक रुप सामने आता है, इसके दो भाग है-

(१)अर्थ वाक ― जो लक्ष्मी जी का क्षेत्र है।
( २ ) शब्द वाक―जो सरस्वती जी का क्षेत्र है।

वाक के चार रुप हैं:-
१- अमृता वाक ― मन और प्राण गीर्भत सत्यावाक,ऋक,यजु ,साम तीनों अमृता वाक हैं। आकाश अमृता वाक है।
२- दिव्या वाक ― अथर्व है। देवता, भूत दिव्या वाक है।
३- वायव्या वाक ― अनाहत नाद,महाभूत,पशु,पक्षी, शिशु रुदन,आदि इन्द्रियों से व्याकृत न होने से अनिरुक्त वायव्या वाक है।
४- ऐन्द्री वाक ― सरस्वती वाक मे ,इन्द्र प्रविष्ट होकर भिन्न भिन्न आकारों मे व्याकृत करता है।(जिस हम बोलते हैं) ऐन्द्री वाक है।
प्राज्ञ ही इन्द्र है, अ,उ,म प्राण के बोधक है।

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