
शुक्र ग्रह :-
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पुराणों के अनुसार शुक्र महर्षि ” भृगु ” के पुत्र हैं।यह एक आँख से काने है तथा दैत्यों के गुरु हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इस ग्रह का व्यास लगभग ७७०० मील है। यह अपनी धुरी पर २३.५ घंटे मे घूमता है। सूर्य की परिक्रमा करते समय इसकी गति २२ मील प्रति सेकण्ड होती है। सामान्यतः यह एक राशि में प्रायः १ मास तक संचरण करता है। यह आकाश में सबसे चमकदार तथा सुंदर दिखाई देने वाला ग्रह है।यह सांयकाल तथा प्रातःकाल दिखाई देता है, परन्तु कभी कभी दोपहर में भी दिखाई दे जाता है।यह मार्गी तथा वक्री होता रहता है।
विशेष ― शुक्र को कालपुरुष का “काम” माना गया है, अतः यह कामेच्छा का प्रतीक है। इसका वर्ण -श्वेत, नेत्र -सुन्दर,लिंग-स्त्रीलिंग, जाति-ब्राह्मण, अवस्था―किशोर, स्वरुप-तेजस्वी, रत्न-हीरा, आकृति-खण्ड, गुण-रजोगुण, तत्व-जल,प्रकृति-कफ,स्वभाव-मृदु, दिशा-पूर्व, रस-अम्ल,धातु-चाँदी, वस्त्र-दृढ़,अधिदेवता-इन्द्राणी,
ऋतू-बसंत, रत्न-हीरा, रुचि-संगीत, वाहन-अश्व,प्रतिनिधि पशु– हाथी और श्वेत घोड़ा, वार– शुक्रवार।
कवि, संगीतज्ञ,चित्रकार, अभिनेता,नर्तक,श्रंगार वस्तुओं के उत्पादक,हलवाई, भोजनालय, मनोरंजन व्यवसाय, पृथ्वी मे गढ़े हुए धन पर इसका आधि माना गया है।
कफ,वीर्य,अण्डाशय, गुर्दा, नेत्र,कामेच्छा, सौन्दर्य, मनोरंजन, सांसारिक सुख,कला, रुप,आकर्षक, स्त्री, निःस्वार्थ प्रेम,विषय वासना,राजमहिषी, श्वेत अश्व, हाथी, शैया,वाहन,हीरा, स्वर्ण,चाँदी, मणि,स्फटिक, आभूषण, सुगंधित द्रव्य, रेशमी वस्त्र रुई,फल,श्वेत पुष्प, मिश्री,चीनी, गेहूं, चावल,अंजीर,नौकरी, ऐश्वर्य, विवाह, धन,छल कपट,कामशक्ति का विचार किया जाता है।
गुप्त रोग,मूत्राशय के रोग,धातु रोग, श्वास संबंधी रोग दोषों का विचार भी इसी से करते है।यह प्रायः २५से२८ वर्ष की अवस्था में जातक पर अपना शुभ या अशुभ प्रभाव डालता है।