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केतु ग्रह :-
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पुराणों के अनुसार ‘केतु’ राहु का धड़ है।इस संबंध में पहले ही बता दिया गया है, भारतीय ज्योतिष का मत राहु के सामान है।
विशेष :-
इसे काल पुरुष का दुःख माना गया है।इसका वर्ण धुएं के रंग का,अवस्था-वृद्ध,जाति-म्लेच्छ, लिंग-स्त्री, स्वरुप-मलिन, आकृति- हृस्व, पद-पक्षी, गुण-तमोगुण, वस्त्र-छिद्रयुक्त, धातु-लोहा,रत्न-लहसुनिया,दिशा-वायव्य दिशा, रस-तिक्त, तत्व-वायु, ,समय-रात्रि में बलवान, संज्ञा-अशुभ, अध्ययन-तंत्र मंत्र मे रुचि, वाहन-जलजीव,प्रतिनिधि पशु- बकरा है, कोई वार नहीं।
केतु का अधिकार पाँव के तलुवों पर माना गया है। यह ध्रूम वर्ण की वस्तुओं का प्रतिनिधि है।
इसके द्वारा नाना चर्मरोग, अद्भुत स्वप्न, क्षुधाजनित कष्ट ,हाथ पाँव के कष्ट, कारावास, दुर्घटना, दुःख,शोक,कण्ठ रोग,कुष्ठ रोग, सन्धि रोग,अशुभ विषय,षड्यंत्र, मृत्यु तथा स्नायु सम्बंधी विकारों का विचार किया जाता है।
सामान्यतः केतु को अशुभ तथा पाप ग्रह माना जाता है, तथापि अत्यंत बली एवं मोक्षदायक होने के कारण शुभ भी मानते है।यह तमोगुणी, मलिन रुपवाला दारुण स्वभाव का है। विचित्र वर्ण तथा वर्णशंकर जाति का ग्रह है। तथापि शुभ स्थिति में होने पर यह शुभ ग्रहों से भी अधिक शुभ फल देता है। यह जातक के जीवन पर प्रायः ४८ से ५४ वर्ष की अवधि मे अपना शुभ अथवा अशुभ फल देता है।