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परमात्मा/ ब्रह्म/ पुरुष – निमित्त कारण
शक्ति/ माया/ प्रकृति- उपादान कारण
” कार्य कारण का सिद्धांत “
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कार्य-कारण के सिद्धान्त मे बिना “कारण” के कार्य नहीं।
कहा गया है सृष्टि है तो सृष्टि का रचनाकार परमात्मा होगा ही, ठीक वैसे ही जैसे चित्र है तो चित्रकार को होना ही चाहिए।
कारण तीन प्रकार के हैं :-
१- निमित्त कारण ― निमित्त कारण उस को कहते है कि जिसके बनाने से कुछ बने,न बनाने से कुछ भी न बने।आप स्वयं बने नहीं, दूसरे को प्रकारांतर बना देवे।
निमित्त कारण भी २ प्रकार के :-
(अ) सब सृष्टि को कारण से बनाने, धारने, और प्रलय करने तथा सबकी व्यवस्था रखने वाला मुख्य निमित्त कारण परमात्मा ।
(ब) परमेश्वर की सृष्टि में से पदार्थों को लेकर अनेक विध कार्यान्तर बनाने वाला साधारण कारण जीव।
2- उपादान कारण :- उपादान कारण उसे कहते है, जिसके बिना कुछ न बने, वही अवास्थान्तर रुप होकर के बने बिगड़े। जैसे उर्जा का कभी क्षय नही सिर्फ रुप बदलाव।
प्रकृति, परमाणु, जिसको सब संसार बनाने की सामग्री कहते है, वह जड़ होने से आपसे आप न बन सकती है न बिगड़ सकती है।
कहीं के कहीं जड़ के निमित्त जड़ भी बन और बिगड़ जाता है।
जैसे जल पाने से सबीज वृक्ष
और अग्नि के संयोग से बीज नष्ट हो जाता है
3- साधारण कारण :- जैसे साधारण निमित्त कारण कुम्हार है परन्तु घड़ा बनाने में चाक, चाक चलाने वाला डंडा, और मिट्टी आदि साधारण कारण हैं।