February 6, 2019

जानिऐ, वर्ण / जाति, गोत्र,प्रवर,शाखा, सूत्र

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वर्ण / जाति कहां से ?
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ऋगवेद के मंडल १०, सूत्र९०, मंत्र १२ के अनुसार ―
” ब्राह्मणोस्य मुखमासीद, बाहूराजन्यः कृतः ।
उरु तदस्य यद्वैश्यः , तदभ्यां शूद्रो अजायत।। “
ऐसा ही यजुर्वेद के ३१ वें अध्याय मे वर्णों की उत्पत्ति के विषय मे कहा है कि- ब्राह्मण वर्ण विराट पुरुष या परमात्मा के मुख के समान, क्षत्रिय वर्ण विराट पुरुष की भुजाएं हैं, वैश्य उस विराट पुरुष की जंघायें अथवा उदर है और शूद्र उस विराट पुरुष के पैर हैं।
दूसरी भाषा में ब्रह्मा जी के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, उरु/ जंघाओं से वैश्य और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया।
यहां प्रश्न यह है कि पहले पहले ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का नाम क्या है ? शायद ही इसका उत्तर आपके पास हो।
वर्ण का अर्थ है रंग,सो रंग के आधार पर भी वर्ण व्यवस्था है। वर्ण माने वृत्ति अर्थात कर्म के आधार पर भी वर्ण व्यवस्था है, यहां कहा गया है “जन्मनो जायते शूद्रा—” अतः जन्म से सभी शूद्र होते हैं कर्मो से ब्राह्मण तक बन सकते हैं ” ।
अन्त मे किसी भी जाति या वर्ण की वृत्ति वरण कर अथवा अपनाकर कुछ हद तक आप वह बन सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हर पुत्र अपने पिता की ही जाति / वर्ण का कहलाता है।
यहां एक दूसरा प्रश्न खड़ा होता है कि एक वर्ण का व्यक्ति अपने वर्ण,और अन्य तीन वर्णो मे शादी कर कितनी वर्णशंकर जातियां पैदा करता है? आइए पहले प्रश्न का उत्तर जानते हैं ब्रह्मा जी के मुख से जो पहले ब्राह्मण हुये वे स्वायंभुव मनु थे। बाहु से पहले क्षत्री जो पैदा हुए वे स्वारोचिष मनु थे। जंघा / उरु से पैदा होने वाले पहला वैश्य रैवत मनु थे, एवं ब्रह्मा जी के पैरों से उत्पन्न होने वाले पहले शूद्र वर्ण के तामस मनु थे।
उपरोक्त सभी के वंश वृद्धि से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण हैं।
लेकिन जातियां , वृत्ति और कर्म के आधार पर हैं और हम सभी जानते हैं कि कर्म ज्ञान से ही होता है जैसे अथर्ववेद का उपवेद है स्थापत्य वेद या शिल्प वेद ,अतः सब शिल्पी पांचाल हैं जिसमें जातियां लोहार, सुतार, पाथकर, ताम्रकार, सोनार इत्यादि।


दूसरे पिता के नाम से पुत्र या एक वर्ण/ जाति से कितनी जातियां जाति हो सकतीं है जानते हैं-
एक ब्राह्मण जाति का पुरुष ने १६ तरह की जातियां दी हैं।
एक क्षत्रिय जाति के पुरुष ने भी १६ जातियां दी हैं।
एक वैश्य जाति के पुरुष ने भी १६ जातियां दी हैं।
अतं मे एक शूद्र जाति के पुरुष ने भी १६ जातियां दी हैं।
जैसे एक वर्ण का उदाहरण समझते हैं पहले ब्राह्मण वर्ण का उदाहरण लेते है
१- जब ब्राह्मण ,ब्राह्मण जाति की स्त्री से शादी कर संतान पैदा करे तो उत्पन्न जाति ब्राह्मण होगी।
२- जब ब्राह्मण एक ब्राह्मणी से बिना विवाह गुप्त रूप से संतान पैदा कर दे तो जाति संतान की कुंड होगी।
३- जब एक ब्राह्मण पुरुष विधवा ब्राह्मणी से एवं गुप्त रूप से संतान की तब उसकी जाति गोलक।
४-जब एक ब्राह्मण ने ब्राह्मणी ही का बालात्कार कर दिया और उत्पन्न संतान सूत जाति का हुआ।
५- ब्राह्मण जब क्षत्रिय जाती से विवाह कर ले तो उत्पन्न संतान की जाति मूर्धा वासिक्त।
६- ब्राह्मण जब क्षत्रिय जाति की स्त्री से गुप्त रुप से संतान पैदा कर दे तो उसकी जाति भिषक जाति होगी।
७-ब्राह्मण जब विधवा क्षत्रिणी जाति वाली स्त्री से संतान उत्पन्न करे तो उसकी जाति आभीर होगी।
८- ब्राह्मण जब क्षत्रिय जाती की स्त्री से बालात्कार कर संतान उत्पन्न कर दे उसकी जाति मदु होगी।
९- ब्राह्मण जब वैश्य जाति की स्त्री से विवाह कर संतान उत्पन्न करे तो उसकी जाति कुम्भकार।
१०- एक ब्राह्मण जब गुप्त रुप से वैश्य जाति की स्त्री से संतान उत्पन्न करे तो उसकी जाति नाई होगी।
११- ब्राह्मण जब विधवा वैश्य स्त्री से संतान उत्पन्न करे तो उसकी जाति बढ़ई होगी।
१२- ब्राह्मण जब वैश्य जाति की स्त्री से बालात्कार करने से उत्पन्न संतान माली होगी।
१३- ब्राह्मण पुरुष जब शूद्र जाति की स्त्री से शादी कर संतान उत्पन्न करे तो जाति मल्लाह।
१४- ब्राह्मण जाति का पुरुष जब शूद्र जाति की स्त्री से गुप्त रूप से संतान उत्पन्न कर दे तो जाति शूलिक होगी।
१५- ब्राह्मण जाति का पुरुष जब विधवा शूद्र जाति की स्त्री से संतान उत्पन्न करे तो जाति ठठेरा होगी।
१६- जब ब्राह्मण जाति का पुरुष शूद्र जाति की स्त्री से बालात्कार कर सन्तान उत्पन्न हो तो उसकी जाति सुनार होगी।
इसी प्रकार क्षत्रिय १६ प्रकार की जाति उत्पन्न की
वैश्य से भी १६ प्रकार की जाति की उत्पत्ति।
शूद्र पुरुष से भी १६ प्रकार की जतियों की उत्पत्ति।
कुल ६४ प्रकार की जातियां है।
शुरू मे ब्रह्मा जी उत्पन्न उत्पन होने से सभी ब्राह्मण।
मुख से जो ब्राह्मण हुये उनकी सभी संतान ब्राह्मण।
बाहुओं से पैदा होने वाले क्षत्रियों की संतान क्षत्रिय।
जंघाओं से पैदा होने वाले वैश्य की संतान वैश्य।
ब्रह्मा जी के पैरो से पैदा होने वाली शूद्र की संतान शूद्र है।
ज्ञान के आधार पर जो ताम्रसंहिता जानता है और त्वाष्टक ऋषि का शिष्य है वह ताम्रकार हैं।
जो धातुवेद संहिता का जानकर है और शिल्पायन के बड़े पुत्र मनु का शिष्य है वह लुहार है। आदि आदि।
कुछ जन्म से क्षत्रिय बाद मे ब्राह्मण बन गये कर्म और ज्ञानानुसार।
एक दूसरे का कर्म स्वीकार कर कालान्तर मे वहीं जाति मे शामिल।
शुरू मे वंश थे जैसे सूर्य वंश और चन्द्र वंश बाद मे चन्द्र वंश से यदु वंश और सोमवंश मे उत्पन्न मांधाता की पत्नी से नागवंश हुआ।
अतः मूल सूर्य ही है और सृष्टि का आधार सूर्य नारायण भगवान हैं।
लगातार………….

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