February 8, 2019

कर्मफल -भाग 41

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योग सिद्धि से अष्ट सिद्धियां, अष्ट ऐश्वर्य और चौसठ गुणों की प्राप्ति
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पहले आप अष्ट सिद्धियों को जान लें :-
१- अणिमा :-
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शरीर को अणु के समान सूक्ष्म बनाना।
२- महिमा :-
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योगी अपने शरीर को वृहदाकार बना सकना।
३- गरिमा :-
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शरीर को बहुत भारी करना।
४- लघिमा :-
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शरीर को बहुत हल्का करना।
५- प्राप्ति :-
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दूरस्थ पदार्थों को देखने या छूने या प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त।
६- प्राकाम्य :-
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इच्छाओं की पूर्ण रुप से उपलब्धि।
७- ईशत्व :-
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शरीर और मन के आन्तरिक संस्थानों और चक्रों पर पूर्ण और संसार भर के सभी पदार्थों को ईच्छानुसार प्रयोग में लाने की सामर्थ्य।
८- वशित्व :-
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सभी पदार्थ और सभी परिस्थितियों पर नियंत्रण।



अन्य प्रकार से ” अष्ट सिद्धियां “
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१-ऊहा सिद्धि :-
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उपदेश की अपेक्षा न करके स्वयं ही परमार्थ का निश्चय कर लेना।
२- शब्द सिद्धि :-
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प्रसंगवश कहीं कुछ सुनकर उसी से ज्ञान सिद्धि मान लेना।
३-अध्ययन सिद्धि :-
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गुरु से पढ़कर ही वस्तु की प्राप्ति हो गई ऐसा मान लेना।
४५६- आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक
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त्रिविध दुःखों का नाश हो जाना दुःख विघात सिद्धि हैं।
७- सुहृदय प्राप्ति सिद्धि :-
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अभीष्ट पदार्थों की प्राप्ति हो जाना।
८-दान सिद्धि :-
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विद्वान या तपस्वियों का संग प्राप्त हो जाना।



एक और प्रकार की अष्ट सिद्धि :-
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१- आत्म सिद्धि :-आतमसिद्धि मे इन्द्रियों और मन का निग्रह स्थित प्रज्ञता की प्राप्ति, समाधि,आत्म साक्षात्कार, तत्व ज्ञान,आत्मदर्शन, जय और मोक्ष प्राप्त होता है।
२- विविध सिद्धि :- ये पंचतत्वों पर नियंत्रण करने और उनके द्वारा अभीष्ट वस्तुएं उत्पन्न करने की सामर्थ्य होती हैं।
३- ज्ञानसिद्धि :- इसमें तीव्र स्मरण शक्ति, तीक्ष्ण बुद्धि, भूत भविष्य की घटनाओं को जान लेना, पूर्व जन्म का वृतांत जानना,शास्त्रो का सार समझना और वैराग्य आदि की उपलब्धि।
४- तपसिद्धि:-तप सिद्धि मे कठोल तपस्या की सामर्थ्य सर्दी, गर्मी सहन करने मे कष्ट न होना, भूख प्यास पर नियंत्रण तथा जल,थल,आकाश गमन शक्ति प्राप्त होना।
५- क्षेत्र सिद्धि :- इसमें अल्प स्थान मे बहुत बड़ी बस्तुएं के सामने सूक्ष्म शरीर से देश देशांतर मे भ्रमण तथा शरीरिक देवताओं का साक्षात्कार करने की शक्ति प्राप्त होना।
६- देव सिद्धि :- देव सिद्धि मे देवता, यक्ष,गन्धर्व, प्रेत,पिशाच, बेताल, ब्रह्मराक्षस,छाया पुरुष आदि कि अनुग्रह,स्वामित्व और सहयोग प्राप्त होता है।मन्त्र सिद्धि,कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है।
७- शरीर सिद्धि :- शरीर सिद्धि मे साधक मे अपार बल भर जाता है।दृष्टि मात्र या स्पर्श मात्र से दूसरों के रोगों और कष्टों को दूर करने की शक्ति प्राप्त होती है, स्वल्पाहार से अनेकों को तृप्त करना, शाप से जिसे चाहे नष्ट करना और वरदान से जिसे चाहे उपकृत करना।पदार्थों को सुगंधित करना, अपना कायाकल्प करना, दीर्घ जीवन प्राप्त करना तथा अमर होना।
८- विक्रिया सिद्धि :- विक्रिया सिद्धि मे परकाया प्रवेश या रुप बदल लेने की शक्ति प्राप्त होती है, अन्तर्ध्यान हो जाना,सबको वशीभूत कर लेना आदि।
लगातार……….

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