February 10, 2019

जानिए वर्ण/जाति,प्रवर,शाखा और सूत्र- भाग 2

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१०८ प्रकार के ब्राह्मण
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सतयुग में एक ही वर्ण का ब्राह्मण था, भारत मे इसके दो भाग हो गये। विन्ध्याचल के दक्षिण में पंच द्रविड़ ब्राह्मण, और विंध्याचल के उत्तर में पंच गौड़ ब्राह्मण
पंच द्रविड़ ब्राह्मणो का क्षेत्र – कर्णाटक, तैलंग,द्रविड़, महाराष्ट्र, गुर्जर ।
पंच गौड़ ब्राह्मणो का क्षेत्र – सारस्वत, कान्यकुुब्ज, गौड़, उत्कल,मैथिल ।
गौड़ ब्राह्मणो को गौतम,कण्व,वाल्मीकि, गालवादि ऋषियों, जबकि द्रविड़ ब्राह्मणो को मान्धाता, श्री रामचंद्र जी,मूलराजा जयसिंह, प्रमृति राजा आदि के नाम दिया।
कुल मिलाकर १०८ प्रकार के ब्राह्मण :-
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१- टोलक
२- औदीच्य
३- श्रीमाली
४- भागड़
५- सिंध
६- त्रिवेदी म्होड़
७- चतुर्वेदी म्होड़
८- मल्ल म्होड़
९- इग्यार्षणा म्होड़
१०- धेनोजा म्होड़
११- खडायते
१२- बाजखेड़ा वाले
१३- भीतरखेड़ा वाले
१४-झारोला वाले
१५- अंतर्वेदी
१६- जांबु
१७- बायडा
१८- कंडोल
१९-गाल
२०-उनेवाल
२१- गिरनारे
२२- गुग्गुल
२३- श्रीगोड़ जूनेवाले
२४-गौड़नवे
२५- मेडूतवाले
२६- औदुंबर
२७- कापित्थ
२८- वटमूल
२९- मृगालवार
३०- पाल
३१- सोताले
३२- शिरपतन मोताले
३३- कर्णाटक
३४- तैलंग
३५- नियोगी
३६- द्राविड़
३७- महाराष्ट्र
३८- चित्पावन कोकड़
३९- काराष्ट
४०- त्रिहोत्र
४१- दशगोत्र
४२- द्वात्रिंशदग्राम
४३- पातित्यग्राम
४४- मिथुनहार
४५- बेलंजीग्राम
४६- गोराष्ट
४७-केरली
४८- तुलव
४९- नैबुरु
५०- हवै
५१- यंबरादि
५२- कंदाव
५३-कोढव
५४-शिवल्ली
५५- दिशा वाल
५६- मटवेवाड़े
५७- त्रिवादि मेवाड़े
५८-चोन्यासी मेवाड़े
५९ – नागर – बड़नगर वाले
६०- विसनगरे
६१- साढोदरे
६२- चित्राडे नागर
६३- भारद नागर
६४- प्रश्नोरे नागर
६५- गौड़ ( जिसके यजमान कायस्थ हैं )
६६- मालवी गौड़
६७- श्रीगौड़
६८- गंगापुत्र गौड़
६९- हरियाणा गौड़
७०- वशिष्ठ गौड़
७१- सौरभ गौड़
७२- दालभ्य गौड़
७३- सुखसेन गौड़
७४- भटनागर गौड़
७५- सूर्यध्वज गौड़
७६- मथुरा के चौबे
७७- वाल्मीकि गुर्जर वंशी
७८- रायकवाल
७९- गौमित्र
८०- दायमा
८१-सारस्वत
८२-मित्रगोड़
८३- कपिल ब्राह्मण
८४-तलाजिये
८५- खेटुवे
८६- नारदी
८७- चंद्रसर
८८- बलादरे
८९- गयाबाल
९० -ओडिये
९१-आभीर
९२- पल्लीवास
९३-लेटवास
९४- सनोदिया
९५-पाराशर
९६- कान्यकुब्ज
९७-सोमपुरा
९८- कांबोज
९९- नादोर्या
१००- भारती
१०१-पुष्कर
१०२- गरुडगलिया
१०३- भार्गव
१०४- नारदीय
१०५- नंदवाण
१०६- मैथिल
१०७- मैत्रायणी
१०८- मध्न्दिनीय
आगे इनके गोत्र,प्रवर,शाखा और सूत्र कहे जाऐंगे।

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