December 31, 2018

कर्मफल (भाग१९)

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अभिमान से युक्त मन से किये हुए कर्मो से ही जीव पुनर्जन्म पाता है, और अन्तकाल मे जैसी मति वैसी ही गति होती है । “ अन्ते या मतिः सा गतिः ”
जैसे- 1-जड़ भरत जैसे महासिद्ध योगी को भी कर्मवशात मरते समय मृग शावक पर आशक्त होने से कालंज्जर गिरि पर हिरिण का जन्म मिला।
2-इन्द्र का पद प्राप्त होने पर भी ऋषि शाप से नहुष को सर्प योनि मे जन्म लेना पड़ा।
3-राजा नृग को गिरगिट का जन्म लेना पड़ा ।
4- ध्रुव मुनि को आखेटरत राजकुमार पर आसक्त होने से राजकुमार का जन्म मिला ।
5- एक अण्डज मुमूर्षु शुकशावक प्रारब्धवश द्वैपायन की आँखों का लाड़ला शुक्राचार्य होकर प्रकट हुआ।
6- कुबेर के दोनों ही लाड़लो नलकूबर और मणि ग्रीव को वृक्षयोनि मे उतर आना पड़ा।
नारद, अगस्त, तथा वामदेवादि ऋषियों के पुनर्जन्मो की कथाएं रामायण तथा महाभारत एवं पुराणों मे प्रसिद्ध हैं।
अतः प्रबल शाप और वरदान हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
हम किसी भी योनि मे जन्म ले सकते हैं।
मनसा वाचा कर्मणा अनुसार भोग प्राप्त करते हैं।
जीवन का जो अभ्यास होगा वहीं अन्त मतिः होगी। फिर उसी अनुसार गति ।
दुर्गति ( नारकी गति ) प्राप्त करना अधम है।
मरने वालों की १० गति होती हैं:- संसार गति, भूतगति, कालगति, पंचतत्व गति, ब्राह्मी गति, दैवी गति,पैत्रीगति, नारकीगति,अगति,समवलय गति, महात्मा प्रह्लाद जी ने कहा है कुमार अवस्था से ही भगवत भजन करना चाहिए क्योंकि मानव जीवन चिरस्थायी नहीं है।


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