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【लोभ मोह धोखे के पुतरा, छले सभी क्या रोय दुखड़ा 】
आज हम ऐसे कर्म और फल की बात करेंगे , जिनकी गिनती दोष मे आती है।
जैसे- क्रोध, काम, शोक,मोह,विधित्सा, परासुता, मद, लोभ,मात्सर्य, ईर्ष्या, निन्दा, दोषदृष्टि, कंजूसी ।
इन दोषों के कारण और निवृत्ति के उपायों का उल्लेख किया जा रहा है।
१- क्रोध- क्रोध लोभ से उत्पन्न होता है, दूसरों के दोष देखने से बढ़ता है, परन्तु क्षमा करने से नष्ट भी हो जाता है ।
२- काम- संकल्प से उत्पन्न होता है, सेवन करने से बढ़ता है, और विरक्त होने से घट जाता है।
३- परासुता ( दूसरों के मारने की इच्छा ) – इसका कारण क्रोध और लोभ सम्मिलित कारण है, दया और वैराग्य से घट जाती है।
४- मोह- मोह अज्ञान से उत्पन्न होता है, पाप की आवृत्ति से से बढ़ता है, और विद्वानों मे अनुराग से मोह तत्काल नष्ट हो जाता है।
५- विधित्सा ( अनुचित कर्म करना)- धर्म विरोधी शास्त्रों का अवलोकन करने करने ससे होती है, मन से भी अनुचित कर्म करने से बढ़ती है और तत्व ज्ञान से नष्ट हो जाती है।
६-शोक – प्रेमी के वियोग से होता है । परन्तु मनुष्य की समझ से शान्त हो जाता है।
७- मात्सर्य – दुष्टों का साथ करने से होती है, सत्य का त्याग करने से बढ़ती है , श्रेष्ठ पुरुषों की संगति से समाप्त हो जाती है।
८- परदोष देखना – लगातार दूसरों के दोष देखने से होता है, बुद्धिहीन लोगों के संग से बढ़ता है और तत्व ज्ञान से यह दोष नष्ट हो जाता है।
९-मद ( Arrogance)- ऐश्वर्य अभिमान, उत्तम कुल से मद होता है, यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होने से मद उतर जाता है।
१०- ईर्ष्या- दूसरे की हंसी खुशी देखने से होती है , विवेक शील बुद्धि के द्बारा नष्ट हो जाती है।
११- निन्दा – नीच मनुष्य के दोषपूर्ण अप्रमाणिक वचनों को सुनकर भ्रम मे पड़ जाने से होती है, श्रेष्ठ पुरुषों के संग से निन्दा नामक दोष समाप्त हो जाता है।
१२- कंजूसी – कृपण मनुष्यों को देखने से होती है, धर्म निष्ठ पुरुषों के उदार भाव को देखकर यह दोष नष्ट हो जाता है।
१३- लोभ – अज्ञान के कारण लोभ होता है, भोगों की क्षणभंगुरता देखने से निवृत्त हो जाता है ।
यदि जो भी मनुष्य ये दोष रखता है तो फलस्वरूप नरक यातनाएं मिलती हैं।