December 31, 2018

कर्मफल (भाग १४ )

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इस भाग में आप फल प्राप्त होने पर सोचेंगे कि यह किस कर्म का फल है ,हमने तो कुछ किया ही नहीं, आइये इसे उदाहरण से समझते है ।
उदाहरण १ के लिए शिवरात्रि व्रत का महात्म्य मे एक कथा है, एक हिंसक शिकारी दिनभर वन मे भटकता रहा, कुछ मिला नही भोजन को अतः भूखा रहा, रात्रि में वन्य पशुओं से बचने के लिए बेल के पेड़ पर चढ़ गया , प्राण भय से रात्रि भर जागता रहा, संयोग ऐसा कि उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग था , शिकारी के हिलने डोलने से बेलपत्र टूटते तो शिवलिंग पर गिरते । यह उसका शिवरात्रि व्रत तथा शिवार्चन माना गया , शिवजी की कृपा प्राप्त हुयी। बताइए कहां उसमें कर्तव्य का अहंकार था । अंत मे एक और उदाहरण २ लेते है- वृन्दावन मे यमुना किनारे एक टीले पर एक अच्छे संत खड़े खड़े श्री ब्रजराज जी की लीलाओ का चिंतन कर रहे थे, कोई ऐसी लीला चित्त मे आयी कि उन संत को हँसी आयी संयोग से उसी समय यमुना जी से स्नान कर कोई दोनों पैरो से लंगडा कूबड़ा साधु उधर आ रहा था। संत को हँसते देख उसे लग कि ये मुझे देख कर हँस रहे है उसे बहुत दुःख हुआ इधर इस संत के हृदय मे भगवल्लीला का दर्शन बन्द हो गया।
बहुत सोचने पर स्मरण आया कि उस समय आसपास तो एक साधु ही दिखा था,ढूंढकर वे उसके समीप गये, साधु ने संत को खरी खरी सुनायी। परंतु संत तो क्षमा माँगने ही गये थे,सो उन्होंने अपनी हँसी का कारण बताया और क्षमा माँगी, सुनकर साधु को भी अपनी भूल का पता लगा ,उसने भी संत से क्षमा माँगी, किन्तु संत मे कही अपमान का कर्तव्य था उनको जो दर्शन से वन्चित रहना पड़ा, सोचिए यह उनके किस कर्म का फल हुआ ?
” गहनो कर्मणो गति” ( गीता 4/17 )
लगातार आपके लिये..

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