
चिकित्सा ज्योतिष ― भाग 5
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जानिये आप का शरीर क्या और कितना रखता है ?
१- जल = १० अंजलि।
२- रस = ०९ अंजलि।
३- रक्त = ०८ अंजलि।
४- विष्ठा = ०७ अंजलि।
५- कफ = ०६ अंजलि।
६- पित्त= ०५ अंजलि।
७- मूत्र = ०४ अंजलि।
८-चर्बी = ०३ अंजलि।
९- मेदा = ०२ अंजलि।
१०-मज्जा= ०१ अंजलि।
११- वीर्य= १/२ अंजलि।
अब आप समझिये किस धातु से कौन सा रोग या विकार होता है।
(१) रसजन्य विकार :- अन्न मे अश्रद्धा और अन्न मे अरुचि से अंगों में फूटन,ज्वर,देह मे भारीपन, हृदय में रोग,पांडुरोग, छिद्र का बंद हो जाना, कृशता, मुख मे विरसता, बिना समय बुढ़ापा, और बालो का सफेद हो जाना।
(२) रक्त जन्य विकार :- कोढ़,मस्से, तिल,लहसन,झांईयां, बाल झड़ना, तिल्ली, वातरक्त, बवासीर, अंगो का टूटना, रक्त प्रदर आदि।
(३) मांस जन्य विकार :- गलगंड घेंघा रोग, ओष्ठ प्रकोप आदि।
(४) मेद विकार :- गांठ, अंडवृद्धि, गलगंड,मधुरोग,अति मे पसीना आना।
(५) अस्थि जन्य रोग :- हड्डियों का दर्द, दांत के ऊपर दांत चढ़ जाना,और हड्डी बढ़ जाना।
(६) मज्जा जन्य रोग :- अन्धकार छा जाना,मूर्छा, भ्रम,जोड़ो का भारी होना, जाँघों मे परेशानी।
(७) वीर्य(शुक्र)जन्य रोग :- नपुंसकता, पथरी आदि रोग होना।
(८) मलाय जन्य विकार:- मल मूत्र रुक जाना।
” पूर्व जन्म कृतं पापं ग्रहरुपेण बाधते “
ग्रह के प्रतिकूल होने से प्राणी को औषधि हितकारी नहीं होती, क्योंकि वो दुष्ट ग्रह बड़ी बलवान औषधि के वीर्य को हरण कर लेते हैं।
जैसे छठे,आठवें, बारहवें घर के स्वामी ग्रह अगर बली हो तो अपनी महादशा या अंतरदशा मे जैसे सूर्य, मंगल,शनि हो तो ज्वर (बुखार) से आदमी पीड़ित हो जाता है।