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प्रश्न ― सपिण्डता क्या है ?
उत्तर ― “जो लोग किसी अपने पूर्वज को पिण्ड दान देने में अधिकारी हों,जिन्हें सूतक व पातक लगता हो, जो जलांजलि देने में अधिकृत हों”
पिता की सात पीढिय़ों में माता की पाँच पीढिय़ों में जो लोग कुटुम्बी पड़ते हों वे सब परस्पर सपिण्ड कहलाते हैं।
” सप्तमीं पितृपक्षाच्च मातृपक्षाच्च पंचमीम्।
उद्वहेत् द्विजो भार्या न्यायेन विधिना नृप ।। ”
( विष्णु पुराण )
पिता की सात पीढियां :-
१- पिता
२- पितामह,
३- प्रपितामह,
४- प्रप्रपितामय,
५- तत्पिता,
६- तत्पितामह,
७- तत्प्रपितामह,
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माता की पाँच पीढियां :-
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१- माता,
२- मातामह,(नाना)
३- प्रमातामय,( पड़़नाना)
४- प्रप्रमातामय,
५- तत्माता,
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६ पीढ़ियाँ इसलिए कही हैं कि वर के तीन,कोष,हड्डी मांसपेशि और मज्जा पिता से, तथा त्वचा, मांस,रक्त माता से प्राप्त होते हैं।
पिता की सातवीं तथा माता की पाँचवीं पीढ़ी से उत्पन्न लड़की से विवाह करने वाला शूद्रत्व को प्राप्त होता है। इस कर्म से वह तथा उनके माता-पिता पतित हो जाते हैं।
” यो मातुश्च पितुश्च पन्चमतया स्यात्सप्तमत्वात्स
वसा
तां कन्यामुपयच्छते त इह जन्मन्येव शूद्राः स्मृतिः।
किन्चामी पतिता न चेत्स्वमितरे हीना जनन्यादितो
हीनां तां परिणीय नैव पतति स्वानर्थता भावतः।।”