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जो कर्म करता है वही फल भोगता है। कर्म का फल भोगना ही पड़ता है, इतनी सीधी बात नहीं।जो कर्म मे अकर्म देखता है और अकर्म मे कर्म देखता है वह मनुष्यों में बुद्धिमान है।
और कुछ कर नही रहे है किन्तु मन मे “यह करो” “यह करो” की योजनाएं बना रहा है तो वह देह से कुछ न करने वाला कर्ता ही है। जैसे प्रधान सेनापति या राष्ट्रपति युद्ध मे तोप चलाते है या बन्दूक ?
लेकिन युद्ध का कर्ता कौन माना जाता है, विजय किसकी कही जाती है, सेवक जो काम करते है उसका पाप ,पुण्य, लाभ-हानि स्वामी का है या नहीं ?
जिसमें कतृत्य का अहंकार है, वह कर्ता ही है।…लगातार आपकी सेवा में