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प्रश्न :- स्वप्न क्यों देखते हैं ? ( Why do we dream )
उत्तर :- यह प्रश्न अभी तक अनसुलझा है, इस संसार के विद्वानों के लिए, यह प्रश्न दस यक्ष प्रश्नों मे से एक है। सभी विज्ञ जन अपने अपने ज्ञान के अनुसार उत्तर देते हैं।
सबसे पहले जान ले अन्यथा ग्रहण रुप स्वप्न है।
कोई भी भ्रम बिना अधिष्ठान के नहीं हो सकता, स्वप्न की उपलब्धि देह के भीतर किसी नाड़ी विशेष मे होती है और नाड़ी मे पर्वत या हाथी होना संभव नहीं है।स्वप्न में जीव देह के बाहर जाकर स्वप्न पदार्थों को देखता है यह भी संभव नहीं और तो और स्वप्नावस्था मे जिन व्यक्तियों से वह मिलता है जागने पर वे ऐसा कहते हैं कि हमने तुम्हें नहीं देखा है । अतः स्वप्न मिथ्या हैं।प्रश्न तो यह है कि हम सपना क्यों देखते हैं ?
आईये पहले यह जान लेतें है कि सपना कौन देखता है, बीजात्मक प्राण सबकी उत्पत्ति करता है और चेतनात्मक पुरुष चैतन्य के आभास भूत जीवों को प्रकट करता है। समस्त पदार्थ अपनी उत्पत्ति के पूर्व प्राणात्मक बीज रुप मे सत ही होते हैं, जैसे यह ब्रह्म ही है पहले यह आत्मा ही था। आत्मा की परिछाईं प्राण है , प्राण और चित्त मिले हुये है ठीक वैसे जैसे तिलों मे तेल, या फूल मे खुश्बू आदि।
स्वप्न में चित्त माया से द्वैताभास रुप से स्फुरित होता है।आत्मा के चार पाद है, विश्व,तैजस,प्राज्ञ और तुरीय । जाग्रत और स्वप्न दोनों स्थानों मे संचार करने वाला आत्मा असंग और शुद्ध है।तैजस मन केभीतर रहता है, तैजस की उपाधि व्यष्टि मन है, और स्वप्न तैजस का स्थान है।
आत्मा जब तैजस के स्थान में संचार करती है तब प्राण का चित्त माया से द्वैताभास रुप से स्फुरित होता है, सम्पूर्ण द्वैत चित्त का ही स्फुरण है, अर्थात जो कुछ चराचर द्वैत हैं सब मन का दृश्य है।और स्वप्नावस्था मे अद्वय मन ही द्वैत रुप से भासने वाला है, अतः स्वप्न मन का ही विलास है।
अतः जीव के संकल्प/ईच्छा इस जन्म या पूर्व जन्मों की पूर्ती हेतु मन ही वस्तु के बिना उपलब्धि को प्राप्त होता है, और यह उपलब्धि सिर्फ मन को ही होता है। अतः मन ही स्वप्न देखता है, और मन ही स्वप्न में दिखाई देने वाला दृश्य बनता है।
अतः चित्त मे कल्पना किये हुये पदार्थों को जीव प्राप्ति हेतु स्वप्न देखता है।
जैसे कुछ बाते होती है मन की ,जो मन ही मन से कर लेता है। मन ही सपना देखता है और कल्पित उपलब्धि भी स्वयं बन जाता है।