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प्रश्न:- जो पदार्थ निरीक्षण, परीक्षण या चिन्तन की गति से परे हैं उनकी जानकारी कैसे की जाये ?
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उत्तर :- ” आचिन्त्याः खलु ये भावा न तांस्तर्केण साधयेत्।
प्रकृतिभ्यः परं यत्तु तदचिन्त्यस्य लक्षणम ।।
जो पदार्थ इन्द्रियातीत होने के कारण चिन्तन नहीं किये जा सकते उनका निश्चय केवल तर्क से नही हो सकता। जो पदार्थ मूल प्रकृति से परे हैं वे पदार्थ अचिन्त्य कहलाते हैं।
शेक्सपियर ने कहा है- There are more things in heaven and earth, Horatio,than are dreamt of in your philosophy. ( स्वर्ग मे और पृथ्वी पर ऐसे अनेक पदार्थ है जिनके सम्बंध मे दर्शन शास्त्र कल्पना तक नही करता )
इसका उत्तर भर्तृहरि के शब्दों में ” स्वानुभूत्येकमानाय “
अर्थात उनके अस्तित्व का एक मात्र प्रमाण निज अनुभव है। अनुभव पुरुषो के अन्तःकरण मे होता है अतएव पवित्र अन्तःकरण वाले महात्माओं का अनुभव ही प्रमाण माना गया है।
क्योंकि विज्ञान यह नहीं बता सकता कि मानव मन वास्तव मे क्या है और मष्तिष्क के साथ कैसे काम करता है।
कोई वैज्ञानिक यह जानने का दावा तक नहीं कर सकता कि चेतना पैदा कैसे होती है।
देह और इन्द्रियां आत्मा के संसर्ग से आत्मा के ही समान चेतन दिखाई पड़ता है।