
” लग्न मे राहु और वैवाहिक सुखों का नाश “
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राहु -केतु छाया ग्रह है, जिनका कुण्डली मे महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वैसे तो राहु-केतु के अस्तित्व, प्रकृति, प्रदर्शन, उच्च और नीच के संकेतो के बारे मे अलग अलग धारणाएं हैं, ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है, परन्तु दशा क्रम इनका पूरा महत्व दिया गया है। आमतौर पर राहु- केतु को चन्द्रमा के नोड्स के रुप मे जाना जाता है।
राहु-केतु निश्चित रूप से भ्रामक और मायावी है, आमने सामने रह कर विषम रुप से विरोध भी करते हैं। वैसे तो सभी इस बात से सहमत हैं “शनिवत राह, कुजवत केतु “
किसी कुण्डली मे राहु-केतु की शुभता का वास्तविक आंकलन करना काफी कठिन है क्योंकि राहु पेशे से और दूसरा केतु अपने पहलू से प्रभावित करता है।
राहु ज्यादातर दुःख,कठिनाइयों, अनैतिकआचरण बेईमानी, अपमानजनक तर्क, अवसाद और पतन का कारण है।जबकि केतु अति संवेदनशीलता, आत्मा का ज्ञान, आध्यात्मिकता और मोक्ष आदि का कारक है।
लेकिन लग्न या सप्तम भाव मे इनमें से किसी भी एक की उपस्थिति वैवाहिक मामलो के लिए हानिकारक है।
सकारात्मक राहु का पक्ष ये है कि वह अपरंपरागत, स्वतंत्र और मानवतावादी है, लेकिन नकारात्मक पक्ष मे वह असामाजिक, विलक्षण विक्षिप्त है।
अगर राहु लग्न मे बैठा है तो वह अपनी दृष्टि से पंचम भाव, सप्तम भाव और नवम भाव को प्रभावित करता है। वैवाहिक बंधन,यौन मामले,बच्चों के गर्भाधान आदि पर खराब प्रभाव डालता है।
यदि कुण्डली मे कोई बहुत अच्छा योग भी उपस्थित हो तो भी ,राहु का हस्तक्षेप उसके अच्छे प्रभाव को कम कर सकता है।
राहु की महादशा ज्यादातर ( कुछ अपवादों के साथ ) उत्पीड़न और परेशान करने वाली है।
राहु परिवार से अलगाव, रिश्तेदारो का शोक, दुर्घटना आदि का कारक है।
यदि राहु लग्न मे बैठकर पाप ग्रह जैसे मंगल,शनि या सूर्य से संबंध बनाए तो शत प्रतिशत निश्चित है कि विवाह सुख नहीं मिलेगा।
या तो व्यक्ति का विवाह ही नहीं होगा, या अति विलम्ब से विवाह होगा, और यदि विवाह हो जाय तो तलाक, वैधव्य, या बेवफाई से अलगाव निश्चित ही है।या कम से कम दुर्व्यवहार ,या ताड़ना से मानसिक रोगी हो जायेगा।