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पुखराज ( Topaz )
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पुखराज या पुष्यराग का रंग पीला होता है, अतः इसे पीतमणि भी कहते हैं। क्वचित इसका वर्ण पीत + रक्त मिश्रित होने से पीतरक्तमणि कह देते हैं। अरबी में इसे वाकूतअसफर तथा फारसी में याकूतजर्द कहते हैं। अंग्रेजी में टोपाज कहा जाता है।
शुद्ध पुखराज की पहचान – पुखराज अमलतास के फूल की भाँति पीला होता है। यह मृदुस्निग्ध तथा चतुष्कोण होता है। यदि पुखराज को गोबर में रखा जाए,तो उसका रंग मटमैला न होकर और अधिक चमकदार हो जाता है।
रासायनिक संगठन ― Aluminium and Silica Compound है।
दोषयुक्त पुखराज ― बहुरंगी, फीकी कांति, रुक्षता, रेखा और धब्बे युक्त ,अभ्रक वर्णीय,और जालयुक्त पुखराज दोषपूर्ण माना जाता है।
पुखराज प्रयोग की ज्योतिषीय स्थितियाँ ―
१- जन्म कुण्डली मे गुरु, मंगल,बुध तथा सूर्य की युति हो तथा गोचर मे गुरु स्वराशि या स्वनक्षत्रों का हो।
२- कुण्डली मे नीच राशि का गुरु राहु से युत होकर बैठा हो।
३- पंचमेश गुरु हो और फिर वह6,8, 12 भावों में बैठा हो।
४- गुरु शत्रु ग्रहों के साथ हो तथा शनि तथा मंगल की युति से दृष्ट हो।
५- तुला लग्न मे द्वितीय भावस्थ हो , मेष लग्न मे तृतीय भाव मे हो अथवा मकर लग्न मे छठवे भाव मे मिथुन का गुरु हो अथवा मीन लग्न मे अष्टम भाव में गुरु हो।
६- नीच का गुरु सप्तम या दशम भाव में राहु के साथ बैठा हो तथा विंशोत्तरी मे गुरु की महादशा में शनि या शुक्र की अन्तर्दशा हो।
७- जब गुरु की अनिष्ट स्थिति के कारण मेदोरोग,कास,श्वास,हिक्का, यक्ष्मा, आमवात, वातरक्त,उदर विकार, हृदयरोग, वात विकार आदि हो।
८- पुखराज के औषधीय गुण―
पुष्परागं विषच्छर्दि कफवाग्निमांद्यनुत्।
दाह कुष्ठास्रशमनं दीपनं पाचनं लघुः।।
अर्थात पुखराज विषविकार, वमन,छर्दि उत्क्लेश,अम्लपित्त, कफविकार,वायु विकार, मन्दाग्नि, कुष्ठ,चर्मरोग नाशक होता है, दाह दूर करता है। हड्डी का दर्द, खांसी, बवासीर आदि में भस्म लाभकारी है।पीलिया मे शहद के साथ घिसकर खिलाने से लाभ होता है।
तिल्ली, गुर्दे आदि के रोगों मे पुखराज को केवड़े के जल मे घोलकर पिलाने से लाभदायक होता है।