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प्रश्न :- सब देवता क्यों नाराज होते हैं और शाप देते है ?
उत्तर :- उपरोक्त प्रश्न का उत्तर जानने से पहले आइऐ देवताओं के विषय में जान लें ।
गीता के अध्याय 7 और श्लोक संख्या 20 के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण जी कहते है कि जिनकी बुद्धि ( भौतिक ईच्छाओं ) द्वारा मारी गई है वे मनुष्य देवताओं की शरण मे जाते है, अपनी इच्छाओं पूजा के विशेष विधि विधानो का पालन करते हैं। जैसे ही कोई देवता की पूजा की इच्छा करता है मैं (श्रीकृष्ण) उसकी श्रद्धा को स्थिर करता हूँ। जिससे वे भक्ति कर सकें। न देवता परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध कोई वर दे सकता है। यहां देवता नाम की सक्षम वस्तु नहीं होती। किन्तु जहाँ जहाँ पानी, पत्थर, वृक्ष आदि में लोगों की श्रद्धा झुकती है वहां मैं ही खड़ा होकर उनकी श्रद्धा को पुष्ट करता हूँ तथा फल का वि्धान भी करता हूँ।
सुर,नर ,मुनि, स्वामी इनकी सेवा विषयों की सेवा है। स्वर्ग ,नर्क देवताओं का प्रपंच है। देवताओं की पूजा प्रपंच की.पूजा है।ये सब भी काल के गालमे समा जाते हैं।
अग जग जीव नाग नर देवा, नाथ सकल जग काल कलेवा।।
देवता आपका भाव जानने की शक्ति नहीं रखते।
देवता त्रिकालज्ञ भी नहीं।
देवता अजेय नहीं। एक उदाहरण देखिए-
रावण आवत सुनऊ सकोहा, देवन्ह तकेउ मेरुगिरि खोहा।।
देवताओं ने लड़ना तो दूर मेरु पर्वत की कन्दराओं मे छिप गये। देवताओं के कर्म देख लें-
इंद्री द्वार झरोखा नाना, तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना।
आवत देखहिं विषय बयारी, ते हठि देहिं कपाट उघारी।।
इंद्रियों के द्वार हृदय रुपी घर के अनेकों झरोखे हैं, प्रत्येक झरोखे पर देवता अड्डा जमाकर बैठे हैं। ज्यों ही वे विषय रुपी हवा को आते देखते हैं ,त्यों ही हठपूर्वक किवाड़ खोल देते हैं। और बेचारा मनुष्य फँस जाता है। इतना ही नहीं, यदि थोड़ा भी उठने की कोशिश करता है तो, अंत मे एक चौपाई और ले लेते हैं –
ऊँच निवास नीच करतूती, देखि न सकहिं पराई विभूति ।।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि वे सिर्फ और सिर्फ अपना ही हित देखते हैं।
जब राम का राज्य तिलक होने की खबर आई तो सभी देवता सरस्वती के पास गये और बोले –
सादर बोलि विनय सुर करहीं। बारहि बार पाय लै परहुं।।
बिपति हमार बिलोकि बड़। मातु करिअ सोई काजु।।
राम जाहिं बन राजु तजि। होइ सकल सुरकाजु।।
जब सरस्वती जी बोले कि ऐसा विघ्न डालते तुम्हें शर्म नहीं आती। फिर विनय कर कहने लगे कि –
जीव करम वश सुखदुख भागी। जाइअ वध देव हित लागी।।
यहां देवता कह रहे हैं कि देवताओं के हित के लिए कौशलपुर जायँ। अर्थात कौशल्या का हित नहीं । सरस्वती बेचारी संकोच मे पड़ गयी और जाते हुये विचार करती रही कि देवताओं की बुद्धि कितनी स्वार्थों है?
अब आप अपना उत्तर भली प्रकार से समझ पायेगें की देवता नाराज होकर शाप क्यों देते हैं।
जो ब्राह्मण नित्य अग्निहोत्र करते हैं, वहीं सब फलो की कामधेनु है देवताओं के लिए अर्थात कल्पवृक्ष हैं। भक्ष्य,भोज्य, पान करने योग्य जो कुछ यज्ञ किया जाता है हवि द्वारा अग्नि में आहुति दी गई है वे ही सब स्वर्ग को मिलती हैं। देवताओं को स्वर्ग में इष्टसिद्धि देने वाला और कुछ भी नहीं है। ज्ञानवान ब्राह्मण (उपरोक्त ज्ञान होना) देवताओं का दुःखदाता ही है। कारण कि वह कर्म नहीं करता, इसके कारण इसके विषय ( पत्नी, पुत्रादि मे प्रवेश कर ) देवता विघ्न करते हैं। लेकिन जब प्राणी दृढ भक्तिमान परमात्मा का होता है तब विघ्न छोडकर भयभीत होकर सभी चले जाते हैं। अतः सिर्फ परमात्मा से प्रार्थना. करो।
