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‘वक्री ग्रह एक विस्तृत विश्लेषण ‘
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ध्रुवबद्धं नक्षत्रं नक्षत्रैश्र्च ग्रहाः प्रति निबद्धाः।
ग्रह बद्धं कर्मफलं शुभाशुभं सर्वजन्तूनाम।।
नक्षत्र ध्रुव से बँधे हुये है, और नक्षत्रों के द्वारा ग्रह बँधे है और उन ग्रहों के अधीन अच्छे बुरे कर्मफल है, जिनका अनुभव प्राणी मात्र करते हैं।
ग्रहों के अधीन कर्मफल अर्थात फल देनेवाले देवता ग्रहों में निवास करते हैं।
देवाधीनं जगत्सर्वं, मन्त्राधीनाश्र्च देवताः।
ते मन्त्रा ब्राह्मणाधीनाः , तस्मात् ब्राह्मण देवतम्।।
अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है कि यह संसार देवताओं के आधुन है, देवता मंत्रो के आधीन है, मंत्र ब्राह्मण के आधीन है ,अतः कह सकते हैं सारा संसार ब्राह्मणों के आधीन होता है।
इसीलिए हवन द्वारा देवताओं को, स्वाध्याय द्वारा ब्रह्म ऋषियों को, श्राद्ध कर्म के द्वारा पितरों को और अंत मे सेवा द्वारा गुरु को प्रसन्न करो। कहा गया है यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो अर्थात दैवी सम्पदा की वृद्धि करो,देवता तुम लोगों की उन्नति करेंगे , ज्यों ज्यों हम यज्ञ मे प्रवेश करेंगे त्यों त्यों हृदय मे दैवी सम्पद अर्जित होती चली जायेगी। परन्तु ब्राह्मण या ग्रह उल्टे चलने लगे ,तब पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के लिए कहा है कि– उपदेश न देने वाले आचार्य, वेद मंत्रों का उच्चारण न करने वाले ऋत्विक, कटु वचन बोलने वाली स्त्री, गाँव की ईच्छा रखने वाले ग्वाले , जंगल मे रहने की कामना करनेवाले नाई, रक्षा न कर सकने वाले राजा, इन छः व्यक्तियों को त्याग दें। परन्तु ग्रह उल्टे चलने लगें अर्थात वक्री हो जाय , ( सूर्य,चन्द्र सदा मार्गी ,राहु केतु सदा वक्री, शेष ग्रह कभी मार्गी और कभी वक्री गति से.भ्रमण करते हैं )। वक्री होने को समझते हैं सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा करती है अतः कभी ग्रह पृथ्वी के बहुत करीब तो कभी बहुत दूरी पर चला जाता है। पृथ्वी से ग्रहों की दूरी घटने.बढ़ने से पृथ्वी के सापेक्ष उसकी गति मे भी निरंतर बदलाव आता है। यदि ग्रह पृथ्वी के बहुत दूरी पर होता है तो वह अधिक गतिशील होता है पर वही ग्रह जब पृथ्वी के निकट होता है उतना ही विपरीत गति में होता है यही ग्रहों का वक्रपना है।
” जब ग्रह और पृथ्वी, सूर्य के एक तरफ हो जाते हैं तो ग्रह की गति वक्री कहलाती है।”
कोई भी ग्रह वक्री/मार्गी तिथि के आसपास होता है तो 100% स्थैतिज ऊर्जा से संयुक्त होता है ।
क्या फल करेगा- ” क्रूरा वक्रा महाक्रूरा, सौम्या वक्रा महाशुभा।”
इस विषय मे कालीदास जी कहते है कि यदि उच्च ग्रह.वक्री हो तो नीच के समान और यदि नीच ग्रह वक्री हो तो उच्च के समान समझना चाहिए।
अन्य ग्रंथ के अनुसार जब कोई ग्रह वक्री ग्रह के साथ हो तो आधा रुपा बल प्राप्त होता है।
चौथी एक बात और कहीं गई है कि ग्रह जब वक्री होता है तो.उसे चेष्टा बल प्राप्त होता है।
विज्ञान कहती है कि ऋणात्मक गतिज उर्जा वाले जातक उस ग्रह के काल मे विपरीत कठिन परिस्थितियों के बीच गुजरते हैं। परिवेश में दैन्य हो जाते हैं और अधिकांश समय किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति होती है।
किन्तु ” स्थैतिजिक उर्जा potential energy से संयुक्त जातक निरंतर काम करने मे विश्वास करते है और फल कि चिंता कभी नहीं करते ,समन्वयवादी होते हैं, अपनी दृष्टि मे व्यापकता और विराटता होती है।
ग्रहों की ताकत ताप,प्रकाश, ध्वनि, विद्युत, चुम्बकीय उर्जा आदि के रुप मे महसूस करते हैं।