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व्यक्ति के पूर्व जन्म की स्थिति
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भारतीय दर्शन की जीव सम्बन्धी विचारधारा निश्चित ही अपने में अनोखी है। अधिकाधिक भारतीय दार्शनिक इस पर विश्वास करते हैं कि जीव मोक्ष पर्यन्त मनुष्यादि अनेक योनियों में भ्रमण करता है। परन्तु इसका विवेचन केवल ज्योतिष शास्त्र करता है कि जीव का आगमन इस बार का आगमन इस बार कहां से हो रहा है और इसके बाद वह कहाँ भ्रमण करेगा। नारद पुराण में इसका विवेचन बहुत सारगर्भित ढंग से हुआ है।
सूर्य और चन्द्र में जो अधिक बली हो तथा उसकी स्थिति जिस द्रेष्काण में हो उस द्रेष्काणेश के अनुसार पूर्व जन्म की स्थिति ज्ञात की जाती है। जैसे द्रेष्काणेश अगर गुरु है तो जातक पूर्व जन्म में देवलोक में था, वहां से उसका आगमन हुआ है। यदि द्रेष्काणेश चन्द्रमा, शुक्र, सूर्य अथवा मंगल है तो वह पहले जन्म में मृत्यलोक मे ही था। यदि शनि और बुध द्रेष्काणेश हो तो उसकी स्थिति जन्म के पूर्व नरकलोक में होती है।
इसके अतिरिक्त यदि द्रेष्काणेश अपने उच्च मे हो तो जन्म लेने वाला देवादि लोक मे उत्तम स्थिति में था।यदि द्रेष्काणेश उच्च और नीच के मध्य हो तो उसकी मध्यम स्थिति उस लोक में होती है। और अगर द्रेष्काणेश अपने नीच में हो तो जातक नीच स्तर में था। ( नारद पुराण )
Utrabhadrpad ketisre charan