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रोग एक उपचार अनेक – भाग 4
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+++++++ “पीलिया” ++++++
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लक्षण :- इसमें रोगी का शरीर पीला पड़ जाता है और आँखों में पीलापन दिखता है। भूख नहीं लगती, हाथ पैर मे दर्द महसूस होता है तथा रोगी को उल्टियाँ होती हैं।
चिकित्सकीय कारण :- जन्मजात, संक्रमण,हीमोलाइसिस, ब्ल्यूरिबिन का अत्यधिक मात्रा में उत्पादन, गालब्लेडर स्टोन इत्यादि कारणों से पीलिया रोग होता है।
ज्योतिषीय कारण :- यदि जन्म पत्रिका मे निम्नलिखित योग हो, तो व्यक्ति पीलिया रोग से पीड़ित होता है―
१- अष्टम स्थान पर शनि हो और उस पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो।
२-सिंह राशि के नवांश में चन्द्रमा हो।
३- षष्ठ स्थान में मंगल और चन्द्रमा की युति हो।
४- जन्म पत्रिका अथवा गोचर में गुरु त्रिक स्थानों मे हो, इत्यादि।
होमियोपैथिक उपचार :- आर्सएल्बम, लाइकोपोडियम, चेलिडोनियम, चाइना, नैट्रमम्यूर।
एलोपैथिक उपचार :- लिवर की शक्ति बढाने हेतु औषधियों का प्रयोग।
आयुर्वेदिक उपचार :- मण्डूक भस्म, वर्धमानपिप्पली, नवायस लौह, आमलक्यावलेह तथा कामलाहर इत्यादि औषधियों का प्रयोग।
तांत्रिक उपचार :- निम्नलिखित मंत्र को सिद्ध करने के उपरांत, मंत्र का उच्चारण करते हुए झाड़ा लगाएँ―
ऊँ नमो वीर बेलात कराल
नरसिंह देव नार कहे
तू देव खादी तू बदी
पीलिया कूँ बिदातु कारै झारै
पीलिया रहै ना एक निशान
जो कहिं रह जाय तो हनुमन्त जती की आन
मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति
फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।।
योगासन उपचार ―
लिवर को शक्तिशाली बनाने के लिए आंजनेयासन,शलभासन, चक्रासन, मयूरासन इत्यादि आसान करने चाहिए।
चुम्बकीय उपचार ―
दोनों हाथों की हथेलियों के नीचे उच्च शक्ति की चुम्बक 10-15 मिनट तक रखें तथा चुम्बकीय जल पीने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
ज्योतिषीय उपचार ―
ऊँ बृहस्पते अतियदर्यो अर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्यीदयच्छवसऋतप्रजाततदस्मासु द्रविडं धेहि चित्रम ।।