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परदा प्रथा क्यों आवश्यक है?
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उत्तर- परदा केवल मुख ढकने का काम नहीं करता, छाती भी ढकने का काम करता है। शील की रक्षा के लिए अंग ढकना जरूरी है। मन का विकास होता है तो मन में संग्रहित काम क्रोध का विकास भी होता है।
मल,मूत्र के द्वार ढकने की आवश्यकता होती है इसमे किसी का कोई विरोध नहीं है।
अधिकृत स्त्री/ व्यक्ति का अधिकृत स्त्री/ व्यक्ति के प्रति रसवरण स्थल पर रसाभास हो जाता है तब भोग्य बनता है।
सर्वत्र अंग बिना बिना ढके रहे ,और रसाभास हो और तो समाज के राक्षस वैसे ही टूट पड़ेंगे जैसे रस को बिना ढके रखने से चींटियाँ और मक्खियों का हमला हो जाता है। ढक कर रखने से रक्षा हो जाती है। निरावरण मे रस और रसाभास हो जाता है अतः गोपनीय अंग ढकना आवश्यक है।
सौंदर्य की अभिव्यक्ति, स्वास्थ्य और शील की दृष्टि से परदा जरूरी है।
आपको आसानी से समझने के लिए आपका ध्यान इस ओर ले जाता हूँ कि सब्जी खुले मे बेचते हैं सडक़ पर, जबकि रबड़ी, मलाई,दूध ढककर बेचते हैं। हीरा – मोती , तिजोरी मे रखकर बेचते हैं ,उसे निरावरण कर सड़क पर रखकर सब्जी की तरह नहीं प्रदर्शित नहीं करते। ये देह अनमोल है कहते है – “बड़े भाग्य मनुष्य तन पावा” । जिस अंग पर आकर्षण है उसे ढककर रखें। निरावरण रखने से आकर्षक खो ही जायेगा। अतः अधिकृत व्यक्ति के प्रति अधिकृत जगह ही रस का आवरण या परदा हटाएं