
प्र. विष्णु का ही अधिकांश मे अवतार क्यों हुआ ?
उत्तर :- भूमि जब आसुर भाव से आक्रान्त होती है, उस समय अधर्म के प्राबल्य से धर्म प्रायः निर्बल पड़ जाता है, और भूमि का भार बढ़ने लगता है। उस दशा मे सृष्टि की रक्षा के लिए अधिकृत विष्णु पर ही धर्म की संस्थापना का भार पड़ता है अतः अपने अधिकार की रक्षा करने के लिए समय समय पर विष्णु को अवतार लेकर धर्म की पुनः प्रतिष्ठा करनी पड़ती है।
” यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ।।”
यहां प्रश्न उठता है ईश्वर भ्रूभंग मात्र से असुरों का संहार करके धर्म की स्थापना कर सकते है फिर उन्हें अवतार की विडम्बना क्यों उठाते है ?
उत्तर मे इतना मै कह दूं कि बिना प्रयोजन विज्ञ पुरुष कोउ कार्य नहीं करता है, वह आत्म विनोद के लिए- निरर्थक लीला करते हैं। इसी तरह सृष्टि का आयोजन ईश्वर की लीला मात्र है। यह लीला स्वभावतः होती है ,ठीक वैसे ही जैसे श्वास-प्रश्वांस शरीर में बिना किसी बाहरी प्रयोजन के स्वभावतः होते है।