
बीज के भीतर शून्य है,और बाद मे बीज जीवंत है
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विज्ञान की आदत है जो चीज आयी उसकी तह मे जाने लगते है, कहाँ से निकला शब्द ?
तालू से निकला, तालू से फिर कंठ पहुंचे, और फिर इस तरह भीतर और भीतर चले जाते है।
वेदांत मे शिक्षा का एक भाग उसी उधेडबुन मे लग जाता है, शिक्षा के आगे कल्प शुरू होता है उसमें शब्द के अर्थ की बात, उसके बाद निरुक्त प्रारम्भ होता है, जिसमें अर्थ का प्रभाव उत्पन्न करने की क्रिया का विश्लेषण होता है।
प्रभाव उत्पन्न करने में जहां तक व्याकरण की भूमिका है, वहां लौकिक भाषा का क्षेत्र है। इसके बाद वैदिक वाणी का क्षेत्र है।
भाषा का गठन ― शरीर विज्ञान –गला,तालु,होठ ,जीभ के विशिष्ट उतार चढ़ाव के भीतर वहां है। जहां से सभी भाषा ,स्वर और व्यजंन ब्रह्माण्ड की भाषा का गठन है। यदि हम सभी अक्षरों को ठीक ठीक बोल सके तो हम भी सभी पशु-पक्षियों से बात कर सकते हैं जैसे आपने व्याकुल हो भगवान श्रीराम जब वन वन सीता जी को ढूंढते फिर रहे थे तथा पशु,पक्षियों से पूछते थे- ” हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी, तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।” सभी स्वर और व्यंजन खोखले गले से निकलते हैं, उसी तरह बीज के अंदर खोखलापन है, जहां बरचुअल फोटोन कंपित होते हैं, और वही साकार पेड़ का कारण है। इसी तरह हमारे गले स्वर -व्यंजन का प्रकम्पित होना हमारे अस्तित्व का इस पूरे ब्रह्मांड का कारण है बीज है इसी लिए कहा गया अक्षर ब्रह्माण्ड का बीज है।
यदि हम पूरे के पूरे ६४ अक्षर जान ले तो हम भी सभी से बात कर सकते है पशु पक्षियों से भी। ज्यादातर लोग अभी ५२/५४ अक्षर ही पढ़ते हैं और जानते हैं तो आइये आज पूरे अक्षर जान लें।
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ऋ् लृ लृ ऊँ क ख ग घ ड़ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऩ ऱ ल़ क़ ख़ ग़ ज़ ड़ ढ़ फ़ य़।
विसर्ग(:) जैसे- अतः,प्रातः
अनुस्वार(ं)- जैसे- गंगा, संभव ।
हलंत (्) जैसे- वन्
अनुनासिक(ँ) जैसे- हसँना।
गृहीत व्यंजन- ज़,फ़,ऩ इत्यादि।
उच्छित व्यंजन – ढ़,ड़ ।
यदि हम सभी अक्षर का ठीक ठीक उच्चारण कर सके तो हम पशु पक्षियों की भाषा समझ सकते हैं और बोल भी सकते है।
जैसे नीलकंठ ०१ मात्रा में बोलता है।― क्र,त्रे
कौआ ०२ मात्रा में बोलता है।― कांव-कांव
मोर ०३ मात्राओं मे बोलता है।― मिंजाओं
सर्प १/२ मात्रा मे बोलता है।- >
मां और बच्चे के बीच जो स्विच है वह है “अ”
इस बटन के साथ ही पैदा होता है। और यह खोखले गले में कंपित होता है।
अतः ब्रह्माण्ड का बीज अक्षर को जानकर हम कुछ भी साकार कर सकते हैं प्राप्त कर सकते हैं।