January 23, 2020

ईश्वर की कृपा का वह क्षण जब मनुष्य खुद को जानने की ईच्छा करता है कि “मैं” कौन हूं ?

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उत्तर में पता चलता है कि जिस ब्रह्म को तू खोज रहा है वह तो तू खुद है- “तत् त्वम असि ” छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७ सामवेद। तुम्हीं ब्रह्म हो,तो क्या पंचभूतों से बना अनात्मा शरीर ब्रह्म है? नहीं ” अयम आत्मा ब्रह्म ” -माण्डूक्य उपनिषद १/२ अथर्ववेद । यदि ऐसा है तो कैसे अनुभूत होगा ? उत्तर में ऐतरेय उपनिषद१/२जो ऋग्वेद का भाग है कहती है “प्रज्ञानं ब्रह्म ” अर्थात अनुभावात्मक ज्ञान से जाना जायेगा , सरल भाषा में जब जीव परमात्मा का अनुभव कर लेगा तो जान लेगा ” अहं ब्रह्मास्मि ” वृहदारण्यक उपनिषद ६/८/७ यजुर्वेद। जानने के साथ ही प्रश्न उठता है यदि मैं ब्रह्म हूं तो तू क्या है ? सामने वाला भी ब्रह्म है, अच्छा मैं भी ब्रह्म हूं और तू भी ब्रह्म है तो दूरस्थ कोई है जिसे देखा नहीं जा सकता ,न सुन पा रहे, न समझ पा रहे,जिसे पहचान भी नहीं पा रहे वह कौन है? – “तत् किमस्ति”? यहां उत्तर है वहीं तत् है ,वहीं ब्रह्म है। ओह मैं भी ब्रह्म हूं, तुम भी ब्रह्म हो, और वो भी ब्रह्म है इसका मतलब हम सब ब्रह्म है ? इसका समर्थन छान्दोग्य उपनिषद३/१४/१ सामवेद करती है और कहती है ” सर्वं खल्विदं ब्रह्म” हा सर्वत्र ब्रह्म ही है। यहां प्रश्न उठता है कि कैसे बोध हो ? इसके लिए सतकर्म करना चाहिए जिससे अन्तःकरण की शुद्धि हो। तथा चित्त की एकाग्रता के लिए उपासना करनी चाहिए, तथा जब उपासना दृढ़ हो जाये तब ब्रह्म का अनुभव करना चाहिए। अनुभव के लिए ध्यान करना चाहिए। मोक्ष के लिए ब्रह्म विज्ञानं करना चाहिए। सामान्य व्यक्ति पहले नित्य कर्म करें, फिर नैमित्तिक कर्म करें, यदि दोष हो जाये तो प्राश्चित कर्म करें, फिर भक्ति करें। भजन करना भक्ति है, तो भजन क्या है ? भगवान की लीला मे रस प्राप्त करना भजन है। “अथातो ब्रह्म जिज्ञासा” यह जिज्ञासा पुरुष प्रयत्न के अधीन नहीं ( वह पहले से ही उपस्थित सत्य है ) अतः यदि आपके मन मे यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि मै कौन हूं तब जानलो आप पर प्रभु की कृपा है। आत्मभाव से मनुष्य जगत का द्रष्टा भी है और दृश्य भी है, जहां जहां ईश्वर की सृष्टि का आलोक व विस्तार है वहीं वहीं उसकी भी पहुंच है वह परमात्मा का अंशीभूत आत्मा है।

 

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2 Responses

  1. Awesome post! Keep up the great work! 🙂

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