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पूर्व जन्म के अंत मे अर्थात मृत्यु के समय जो वासनाये या इच्छायें अतृप्त रहती हैं वह वासनाये अथवा इच्छायें पूर्ण करने के लिए फिर से जीवमात्र को जन्म लेना पड़ता है। इसलिए अंतिम वासनाओं का और इच्छाओं का सूक्ष्म विचार करना जरुरी है । कहा गया है- “अंत मति सो गति ” ।
सबसे पहले यह ध्यान रखने रखने योग्य बात है कि मनुष्य प्राणी जो भी फल भोगता है वे कर्म आठ प्रकार के होते हैं :-
१- स्वयं के द्वारा पूर्व जन्म में किये कर्म का फल।
२- अनुवांशिक कर्म वंश परम्परा से चले आ रहे रोग आदि।
३- पिता द्वारा किए गए कर्मो का फल ।
४- माता द्वारा किए गये कर्मो का फल।
५- पत्नी के सम्बन्ध मे किये गए कर्मो फल।
६- अपनी संतति और अपने खुद के परस्पर सम्बन्धो मे किये गये कर्मो का फल।
७- भाई,इष्ट मित्रों के समावेश किये गये कर्मो का फल माने संगति का फल ।
८- जिस जिस भूमि से अपना सम्बन्ध आता है उस उस भूमि पर हुए कर्म का फल माने जिस मकान में रहते है इत्यादि कर्मफल सभी प्राणियों को भोगना पड़ता है।
यहां पर हम आपको पहले नम्बर पर लिखे अर्थात स्वयं के द्वारा पूर्व में किये कर्मफल के बारे मे समझाते हैं। इसका प्रतिनिधित्व न्यायकारी शनि महाराज करते है।
यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली मे शनि ग्रह वृष राशि, कन्या राशि, मकर राशि मे है तो जान लीजिए ये पूर्व जन्म से ही परेशान है। या तो विवाह नही होता, अगर विवाह हो जाए तो संतति नहीं होती, और अगर संतान हो गई तो दरिद्र योग होता है।
अगर व्यक्ति की कुण्डली मे शनि ग्रह कर्क राशि, वृश्चिक राशि, मीन राशि मे बैठा है तो प्रपंच और परमार्थ दोनों साध्य होते हैं माने पूर्व जन्म में साधू स्वभाव था।
शेष राशियों में माने मेष,सिंह, धनु,मिथुन, तुला, कुंभ राशि में शनि है तो मनुष्य इस जन्म में महान आत्मा बनने का प्रयत्न अवश्य करते दिखाई देते हैं।