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सनातन धर्म – प्राकृतिक धर्म है। (Natural Law)
वस्तु के वास्तविक स्वरूप को- स्व स्वरूप मे सुरक्षित रखकर जो शक्ति उस वस्तु द्वारा घृत रहती है, वही शक्ति तत्व शास्त्रों में *धर्म* शब्द से व्यवहृत हुआ है।
शक्ति सत्ता मे कल्याण भाव को प्राप्त हुआ पदार्थ – *शिव* है।शिव का कल्याण शक्ति सत्ता पर निर्भर है।
धर्म ही धर्मी की प्रतिष्ठा है। जिस दिन धर्म न रहेगा धर्मी भी न रहेगा।
मनुष्य तभी तक मनुष्य है जब तक उसमें मनुष्य धर्म है अन्यथा पशु है।
ताप- अग्नि का धर्म है।
प्रकाश- सूर्य का धर्म है।
प्रतिष्ठा – पृथ्वी का धर्म है।
जब तक ताप, प्रकाश, प्रतिष्ठा है तभी तक इनकी स्वरूप सत्ता है।
वस्तु की सत्ता तभी तक है- जब तक उसकी शक्ति(धर्म) उसमें प्रतिष्ठित है। धर्म नहीं रहेगा तो सत्ता भी नहीं रहेगी।
सनातन धर्म मे सनातन शब्द का अर्थ है सदा रहने वाला।
ऐसा धर्म जो सदा रहता है उसी को भारतीयों ने अपनाया है। इसमें मनुष्य धर्म, वर्ण धर्म, जाति धर्म, कुल धर्म, देश धर्म सभी का समुच्चय का ही नाम भारतीय धर्म है यही हिन्दू धर्म भी है।
यहां भी धर्म और धर्मी का नियम लागू होता है-जब तक हिन्दू धर्म है तभी तक हिन्दुजाति स्वरूप मे प्रतिष्ठित है। हिन्दुधर्म/भारतीय धर्म/ सनातन धर्म – हमेशा रहनेवाला धर्म है । हमेशा रहने वाला तो केवल प्राकृतिक अर्थात प्रकृति सिद्ध नित्य धर्म ही हो सकता है।
अतः सनातन धर्म प्राकृतिक धर्म है।