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वास्तु और रोग :-
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(१) यदि उत्तर-पूर्व कोने मे भारी वजन है और गंदा रखा जाता है तो उच्च रक्तचाप, मानसिक शांति की कमी होती है। विकास रुक जाता है और रहने वालों को सिर मे दर्द रहता है।
(२)यदि उत्तर-पूर्व क्षेत्र मे रसोई है तो तनाव, वात रोग ,पेट की परेशानी, भूख की समस्या और यहां तक ओरल कैविटी की समस्या भी हो सकती है।
(३)यदि कोई दक्षिण-पूर्व क्षेत्र मे जल स्रोत निर्माण करता है तो आंतों की समस्या, यकृत,प्लीहा और अग्नाशय संबंधी विकार होते हैं।
(४)यदि उत्तर-पश्चिम का कोना अत्यधिक भरा हो तो घर के मालिक को फेफड़े की समस्या, साँस नली में तकलीफ, वात विकार जैसे जोड़ों में दर्द, गठियावात आदि से परेशानी होती है।
(५) घर मे दक्षिण पश्चिम का क्षेत्र हमेशा भारी होना चाहिए और इसे कभी खाली नहीं रखना चाहिए यदि ऐसा है तो इसमें रहने वाले को अनुचित तनाव, क्रोध,शांति मे कमी होती है।
(६) घर के केंद्र में दबाब नहीं होना चाहिये ,न ही कोई गड्ढा, कुंआ,नलकूप या खंभा होना चाहिये इसके विपरीत यह साफ और स्वच्छ होना चाहिए, क्योंकि इस क्षेत्र की नकारात्मक स्थितियां बहुत ही खतरनाक हैं। क्योंकि घर के मुखिया को मानसिक असंतुलन प्रदान करती हैं, तनाव, तंत्रिकातंत्र सम्बंधित समस्याएं, सिरदर्द, पक्षाघात, याददाश्त मे कमी भी लाती हैं।
(७) यदि किसी घर मे बिना किसी कारण से बदबू आती है तो घर के बच्चों का स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां होगी।
(८) जब घर के दक्षिण पूर्व कोने मे कोई कुंआ या नलकूप हो तो यह परिवार के लोगों के शरीर को कष्ट प्रदान करता है। इसी तरह घर के दक्षिण मे कुआँ या नलकूप हो तो घर की महिलाओं को शारीरिक कष्ट देता है। उत्तर पश्चिम, दक्षिण पश्चिम, की ओर कुंआ या नलकूप भी नकारात्मक है।
(९) जो लोग जि़ग-जै़ग भूखंड पर निर्मित घर मे रहते हैं वे हमेशा प्रतिकूल व्यवहार करते हैं। आमतौर पर तनाव में रहते हैं।
(१०) जब किसी घर का दरवाजा बिना किसी कारण के अपने आप खुलता है तो घर मे रहने वाले लोगों को तंत्रिकातंत्र, याददाश्त मे कमी, अनिद्रा आदि परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
(११) जब कोई जगह दक्षिण-पूर्व दिशा कटी हो दबी हो तो घर मे रहने वालों को पेट,तिल्ली, बवासीर, भगंदर आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
(१२) घर का द्वार यदि नैऋत्य कोण मे हो तो घर के निवासियों को निम्न रक्तचाप, यौनविकार,आदि बिमारियों से पीड़ा होगी।