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“आत्मा से मुलाकात के लिए मन को जीतो
मन को वश मे करने के लिए नर्वस सिस्टम की हड़ताल”
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अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ३० जुलाई १८२२ मे लखनऊ में जन्मे और २१/९/१८८७ मे मटियाबुर्ज मे आखिरी साँस ली। इनके बारे मे एक कहानी का विशेष उल्लेख अक्सर सुनने मे आता है।
१८५७ में अँग्रेज अवध को अपने बस मे करने के लिए हमला कर रहे थे, वाजिद अली शाह अपने महल मे थे , नवाब इसलिए नहीं भाग पाए क्योंकि तब महल मे ऐसा कोई नौकर मौजूद नहीं था जो नवाब साहब के पांवों मे जूतियां पहना सके और वो पकड़े गये।
मन बताता है और तंत्रिका तंत्र अनुसरण करता है।
तंत्रिका तंत्र के तानाशाह, तंत्रिका तंत्र का मालिक मन है।
अर्थात मन तंत्रिका का मालिक है, दूसरे शब्दों में तंत्रिका तंत्र नौकर है।
मन भी शाही राजा है पर बिना नौकर (तंत्रिका तंत्र) के कुछ भी नहीं कर सकता।
जब मन मनुष्य का होता है तो उसमें महानता अधिकतम होती है, इसे प्रबंधित करने के लिए एक अत्यधिक विकसित तंत्रिका तंत्र होना चाहिये।अन्यथा वह काम नही करता वह दिन भर की गतिविधियों मे थक जाता है और वह चिंता छोड़ गहरी नींद मे सो जाता है।
अगर मालिक(मन) का सेवक(तंत्रिका तंत्र) सोता है वह आदेश नहीं दे सकता और चिंता भी नहीं कर सकता।
अब मन के पास २ विकल्प है पहला ये कि मन खुद के साथ जागे। दूसरा नौकर के साथ सो जाए।
यहां यदि मन अपना मालिक है तो वह अपने साथ जागता है, परन्तु यदि मन नौकर(तंत्रिका तंत्र) का दास है तो नौकर के साथ बिस्तर पर सो जाता है।
अर्थात मन को तंत्रिका तंत्र का दास मत बनाओ।
मन मालिक बने, क्योंकि मन आत्मा से जुड़ा है। दिमाग अलग है जो शरीर से जुड़ा है।
कहा गया है― “मन के हारे हार ,मन के जीते जीत”
मन को जीतना सरल है, क्योंकि तंत्रिका तंत्र की हड़ताल से मन भाग नही पायेगा और वाजिद अली शाह की तरह पकड़ मे आ जायेगा अर्थात मन को हम जीत लेंगे।
” मन जीते जग जीत “
पहले भी कहा गया है मन को मारना नहीं है सिर्फ वश मे करना है।