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“शक्ति का अर्थ “→ श + क्ति
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ऐश्वर्य(सामर्थ्य) पराक्रम(बल)
ईश्वर अपनी शक्ति के बल पर त्रिकाल बाधित रहता है।
“शक्ति की परिभाषा”→ कारण वस्तु मे जो कार्योत्पादनोपयोगी अपृथक सिद्ध धर्म विशेष जो है उसी को शक्ति कहते हैं।
“शक्ति के प्रकार”
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(१) परा शक्ति-विष्णु शक्ति-परमात्मा शक्ति
(२) अपरा शक्ति- क्षेत्रज शक्ति-जीवात्मा शक्ति
(३) अविद्या शक्ति- कर्म शक्ति।
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(१) अपरा शक्ति― शिक्षा, कल्प,निरुक्त, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष ।
Bhumir , Apo, Nalo ,Vayu ,Kham,Mano,Buddies,Ahankar.
जप,होम,तर्पण,मार्जन,ब्राह्मण भोजन द्वारा अपरा शक्ति को वश मे कर सकते हो।
(२) परा शक्ति ― नारायणी, शिवा,शाम्भवी, वैष्णवी, प्रभा,गाणेशी,सौरी,लक्ष्मी।
ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ऐन्द्री, चामुंडा।
सृष्टि शक्ति, ज्ञान शक्ति, असुरविजायनी,चैतन्य, काल शक्ति, स्वरुप शक्ति, इन्द्र शक्ति, विध्ंसक शक्ति।
पटल,पद्धति,वर्म,स्त्रोत,सहस्त्रनाम द्वारा परा शक्ति को वश मे कर सकते हैं।
(१)पटल → चित्र को शक्ति सम्पन्न करना।
(२)पद्धति→ षोडशोपचार पूजन पद्धति।
(३) वर्म→ इष्ट मंत्र के अक्षरों द्वारा पिण्ड की रक्षा।
(४)स्त्रोत→ मंत्र की स्मृति/मंत्र का ध्यान।
(५) सहस्रनाम→ हजार गुणों का गान करना चाहिए।
शक्ति का आविर्भाव→नाद→बिन्दु→अक्षर।
शक्ति { जड़ शक्ति→ प्रकृति नियंत्रित करती है।
{चेतन शक्ति → स्वतः नियंत्रित है।
शक्ति का अविद्या रुप भी आवश्यक है जिस तरह किसी भी फल का छिलका रहने पर, फल बढ़ता है और जब फल तैयार हो जाता है तो छिलका फेक देना पड़ता है।
बीज को जमीन में दबाने पर मिट्टी की परत जो बीज के ऊपर दिखती है, बाधा की तरह दिखाई देती है किन्तु सत्य तो यह होता है कि जमीन बीज को दबाकर उसे अंकुरित होने मे सहायता करती है।
इसी तरह माया रुपी छिलका रहने पर धीरे धीरे मर्म ज्ञान होता है, जब ज्ञान रुपी फल परिपक्व हो जाता है! तब अविद्या रुपी छिलके का त्याग कर देना चाहिए।
प्रकृति की कोई भी बाधा वास्तव में बाधा नहीं, जो भी बाधा दिखायी पड़ती है वह शक्ति को जगाने की चुनौती है।
लेख के शुरुआत में अपरा विद्या को जप,होम,तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन द्वारा वश मे कर सकते हैं लिखा है, लेकिन तप,व्रत, तीर्थ, जप,होम,तथा पूजा आदि सत्कर्मों का अनुष्ठान तथा वेद,शास्त्र और आगम की कथा तभी तक उपयोगी है तब तक तत्व ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है?
अतः जैसे हंस जल के मध्य से दूध को ग्रहण कर लेता है उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी शास्त्र के सारतत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए।
तत्त्वज्ञान प्राप्त करके बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि जैसे धान चाहने वाला व्यक्ति धान ग्रहण करके पुआल को छोड़ देता है, उसी तरह मनुष्य को भी शास्त्र को छोड़ देना चाहिए।
क्योंकि अमृत से तृप्त व्यक्ति के लिए भोजन की कोई आवश्यकता नहीं होती ,उसी प्रकार तत्त्वज्ञ को शास्त्र से कोई प्रयोजन नहीं होता।
न वेदाध्ययन से मुक्ति प्राप्त होती है और न शास्त्रों के अध्ययन से ही। मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से होती है किसी भी दूसरे उपाय से नहीं।
गुरु का वचन ही मोक्ष देने वाला है, अन्य सब विधान विडम्बना है।
ज्ञान प्राप्ति के दो उपाय-(१) आगम शास्त्र (२) विवेक
आगम शास्त्र से शब्द ब्रह्म का ज्ञान।
विवेक से परमब्रह्म का ज्ञान।
आगम माने तंत्रशास्त्र , तंत्र का सामान्य अर्थ है विधि या उपाय।तंत्र ऐसा करघा है जो ज्ञान को बढाता है। तंत्र के सिद्धांत आध्यात्मिक साधनों, रीति रिवाजों के पालन, भैषज्य विज्ञान, लौकिक व पारलौकिक शक्तियों की प्राप्ति,योग द्वारा निरोग रहना,वनस्पति विज्ञान,ज्योतिष शास्त्र, तथा शारीरिक रचना की जानकारियां हैं।