May 22, 2021

Mohini Ekadashi Katha,Muhurat & Importance

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वैशाख शुक्ल एकादशी ( २३ मई २०२१ उदयाकालीन)
( मोहिनी एकादशी ) माहात्म्य द्वारा श्रीकूर्मपुराण-
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एकादशी शुरु २२/५/२०२१- ०९:१८ सुबह से
एकादशी समाप्त २३/५/२०२१- ०६:४५ सुबह तक।
उदयाकालीन तिथि मानने वाले, एवं वैष्णव २३ को व्रत
वैशाख शुक्ल एकादशी कथा― हे जनार्दन! वैशाख शुक्ल पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका फल तथा विधि क्या है? इसको आप कृपाकर वर्णन कीजिए।
श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि, हे धर्मपुत्र! मैं तुम्हें उस कथा का वर्णन करता हूं जिसका भगवान् वशिष्ठ ने महाराज रामचंद्र जी के वास्ते उपदेश दिया था।

भगवान राम बोले कि, भगवन्!मैं सब व्रतों में जो श्रेष्ठ व्रत हो उसे सुनना चाहता हूं, जो सब पापों को नष्ट करता एवं सब दुःखों को काटता हो। हे महामुने! मैंने सीताजी के विरह से अनेक प्रकार के दुःख भोगे इसलिये मैं डरकर आपसे पूँछना चाहता हूँ।
वशिष्ठ जी बोले कि, हे राम! तुमने बहुत उत्तम प्रश्न किया, क्योंकि, तुम्हारी बुद्धि आस्तिक है। तुम्हारे नाम के लेने ही से मनुष्य पापरहित हो जाता है। तो भी लोकहित की कामना से पवित्र से पवित्र और उत्तम से उत्तम व्रत को तुम्हारे लिए मैं वर्णन करुंगा।
हे राम! वैशाख शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है उसका नाम “मोहिनी” है वह सब पापों का संहार करतीं है। इस व्रत के प्रभाव से मैं सत्य और सत्य कहता हूं कि, मनुष्य मोह जाल से और पापों के समूह से अवश्य मुक्त हो जाता है। इसी कारण हे राम! आप जैसी आत्माओं के लिए पापनाशिनी और दुःखहारिणी एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए।
हे राम! पुण्य प्रदान करने वाली इसकी पवित्र कथा को भी आप एकाग्र चित्त के सुनने ही से मनुष्य के पाप धुल जाते हैं।

सरस्वती के सुन्दर तटपर एक भद्रावती नाम की सुन्दर पुरी थी। उसमें द्युतिमान नाम का राजा राज्य करता था। वह द्युतिमान चन्द्रवंशी धृतिमान और सत्य प्रतिज्ञ था। वहाँ पर एक धनधान्य सम्पन्न धनपाल नाम का पुण्यात्मा सेठ भी रहा करता था। जो सदा यज्ञ आदि शुभ कर्मों का कराने वाला तथा पानी शाला, तालाब, बगीचे, धर्मशाला आदि पुण्य स्थानों को बनवाया करता था। वह बड़ा शान्त वैष्णव था। उसके पाँच लड़के हुये। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृती और पाँचवा धृष्टबुद्धि महापापी था, जो सदा वेश्याओं के पास रहता था और बदमाशों की संगति करता था।जूआ खेलना और व्यभिचार करना उसका मुख्य काम था। वह कभी न देवों की पूजा ही करता था।
अन्यायी, दुष्ट, पिता के द्रव्य को नष्ट करनेवाला अभक्ष्य भक्षी और शराबी था। सदा वारवधुओं के हाथ,द्विजों को देखता हुआ भी गलवाँह डालें रहता था। वेश्या संग करने के कारण ही उसके पिता ने और उसके बान्धवों ने उसे घर से निकाल दिया। उसनें अपने भूषण नष्ट कर डाले एवं वेश्याओं ने भी उसे निर्धन हो जाने के कारण निन्दा कर अलग कर दिया था।
तब उसे बड़ी चिंता हुई।नंगा और भूखा रहने लगा,सोचने लगा कि, अब क्या करूँ और कहाँ जाऊँ।

उसी नगर मे उसने चोरी करना शुरु किया। पुलिस ने उसे पकड़ा भी पर पिता के लिहाज से छोड़ दिया। फिर पकड़ा गया फिर छोड़ दिया और अंत मे उसे फिर पकड़कर हथकड़ी डाल ही दी गई। बेंत और चाबुकों से मार पड़ने लगी।कहा गया कि हे दुष्ट! तू हमारे देश में से निकल जा। ऐसा सुनाकर उसे जेल से निकाल दिया। इसी डर से वह किसी गहन वन मे जा छिपा । भूख प्यास से व्याकुल होकर इधर उधर भागने लगा। सिंह की भाँति मृग सूअर और चीतों को मारने लगा। माँस खाकर वन मे गुजर करने लगा। धनुष पर तीर रखकर और तर्कस को पीठ पर लादकर जंगली जानवर तथा चकोर, मयूर,कंक,तीतर,चूहे सभी दूसरों को भी घृणा रहित मारकर खाने लगा।
पहले जन्म के लिए हुये पापों से पापरुपी कीचड़ मे फँस चुका था।
इस प्रकार सदा दुःख और शोक मे दिन काटता हुआ किसी पुण्य प्रभाव से वह कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। वह धृष्ट बुद्धि शोक के भार से दुःखी होकर वैशाख महीने में गंगा स्नान कर आये हुए तपोधन ऋषि के पास.आ उपस्थित हुआ उस आश्रम को उनके भीगे हुए वस्त्रों की बूँद मात्र से वह पापी शुद्ध हो गया। सब पाप निवृत्त हो गये हाथ जोड़ते हुए कौण्डिन्य के आगे चलकर उसने प्रार्थना की कि, हे ऋषि महाराज! आप मुझे प्राश्चित बतलाइए जिससे कि मेरे जन्म मर किये पाप नष्ट हो जो कि ,धन के बिना ही हो जाय क्योंकि, मेरे पास अब धन नहीं है।

ऋषि बोले कि, हे धृष्टबुद्धि! तुम एक दिल होकर सुनो जिससे कि , तेरे जन्म भर के पापों का नाश हो।
वैशाख के शुक्लपक्ष की मोहिनी नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत तू मेरी आज्ञा से कर । उससे प्राणी मात्र के सुमेरु पर्वत के समान भी बडे सब पाप नष्ट हो जाते हैं। बहुत जन्मों के पुण्य फल से इस मोहिनी का उपवास किया जाता है।
यह सुनकर वह पापी धृष्टबुद्धि बड़ा प्रसन्न हुआ। कौन्डिन्य ऋषि के उपदेश से उसनें विधिपूर्वक व्रत किया और उस व्रत करने से हे नृपश्रेष्ठ वह पापहीन हो गया। दिव्य देह धारण कर गरुड पर चढ़ गया तथा निर्विघ्नता पूर्वक विष्णु के शान्त स्थान मे जा पहुंचा।
इस प्रकार हे रामचन्द्र जी महाराज! यह व्रत मोह को काटने वाला है। इससे अधिक अच्छा इस विश्व में दूसरा कोई व्रत नहीं है।
यज्ञ आदि तथा तीर्थ दान इसकी षोडशी कला को भी नहीं पा सकते और हे राजन ! पढने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है।
यह कूर्म पुराण का कहा हुआ वैशाख शुक्ला की मोहिनी नाम की एकादशी का माहात्मय समाप्त हुआ।

विशेष- स्कन्द पुराण के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत का बँटवारा करने के लिए भगवान् विष्णु ने मोहिनी रूप धारण इसी तिथि वैशाख शुक्ल एकादशी को किया था।
भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा करें या भगवान् राम की षोडशोपचार पूजा करें। तथा
“ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” या
“ऊँ राम रामाय नमः ” का जाप भी अवश्य करें।

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