
आइये राहु और केतु नामक छाया ग्रहों को पहचानते हैं:-
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ग्रह अर्थात जो पिण्ड सूर्य की परिक्रमा किया करतें है उन्हें ग्रह कहते हैं।
बुध ,शुक्र,पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि सूर्य की परिक्रमा करते हैं अतः ग्रह हैं।
क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है ,अतः उपग्रह है पर पृथ्वी की परिक्रमा के साथ साथ वह सूर्य की परिक्रमा भी करता है अतः चंद्र भी ग्रह है।
सूर्य जो तारा है वह भी क्रान्तिवृत से होता हुआ ग्रहों और नक्षत्रों के साथ आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है अतः सूर्य को भी ग्रहों मे गिना गया हैं।
अब राहु और केतु नामक छाया ग्रह हैं ये कहां हैं?
ज्योतिःशास्त्र प्रयोगात्मक विज्ञान है, समय समय पर experimental error का संशोधन करना पड़ता है जिसे बीज संस्कार कहते हैं।
लोकानामन्तकृत्कालः कालोन्यः कलनात्मकः।
स द्विंधा सथूल सूक्ष्म त्वान्मूर्तश्चामूर्त उच्यते।।
दो प्रकार का काल है
(१) सूक्ष्म-अमूर्त(अखण्ड व व्यापक) लोको का अंत करने वाला *काल*
(२) स्थूल -मूर्त ,नापा जा सकता है। कलनात्मकः।
१ गुरु उच्चारण का समय =असु
१० गुरु = ०१ प्राण ।
२१६०० प्राण = ०१ दिन = ८६४०० सेकंड।
दो सूर्योदय का समय = २३ घण्टा ५६ मिनट ०४सेकंड।
~ नक्षत्र दिन।
एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या= चान्द्र मास।
~ चान्द्र मास = २९.५३०५८७९४८ सावन दिन।
【 सावन दिन नक्षत्र दिन से ४ मिनट बड़ा होता है 】
अमावस्या के दिन से
सूर्य से चंद्रमा १२°आगे जब प्रतिपदा।
सूर्य से चन्द्रमा २४°आगे द्वितीया।
सूर्य से चन्द्रमा ३६°आगे तृतीया ।
सूर्य से चन्द्रमा १८०°आगे पूर्णिमा।
पूर्णिमा के बाद चन्द्रमा ०२घटीअर्थात ४८ मिनट पीछे निकल जाता है।
सूर्य जिस मार्ग से आकाश की परिक्रमा करता है उसे क्रान्तिवृत्त कहते है।
क्रान्तिवृत्त/१२= ०१ राशि = ३०°
एक राशि से दूसरी राशि मे जाना= संक्रांति।
एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति= सौरमास।
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर देवताओं के रहने का स्थान।
पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर राक्षसों के रहने का स्थान।
सूर्य विषुवत रेखा पर तब दिन रात बराबर ( वर्ष में सिर्फ २ बार )
०६ माह सूर्य विषुवत रेखा के उत्तर मे
०६ माह सूर्य विषुवत रेखा के दक्षिण में रहता है।
उत्तर गोल मे दिन बड़ा और रात छोटी होती है जबकि दक्षिण गोल मे रात बड़ी और दिन छोटा होता है।
विशेष ध्यान रखने वाली यह है कि जब सूर्य विषुवत रेखा के उत्तर में रहता है तब उत्तरी ध्रुव पर (सुमेरु पर्वत पर) ०६ माह तक दिखाई देता है।तथा दक्षिणी ध्रुव पर इस समय रात होती है।
इसका मतलब हमारे ६ माह अर्थात ३०×६=३६० दिन
और देवताओं या राक्षसों का एक दिव्य दिन।
हमारे ३६० वर्ष और देवताओं का ०१ दिव्य वर्ष।
आकाश में जितने तारे वे सब ग्रहों के साथ पश्चिम मे जा रहे हैं, परन्तु नक्षत्रों के बहुत शीध्र चलने के कारण ग्रह पीछे रह जाते हैं, और पूर्व की ओर चलते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसका कारण यह है कि इनकी पूर्व की ओर बढ़ने की चाल तो समान है परन्तु कक्षाओं का विस्तार भिन्न भिन्न होने से गति भिन्न भिन्न दिखाई देती है।
शनि एक पूरा चक्कर ३० वर्ष में, जबकि सूर्य एक चक्कर ०१ वर्ष में अर्थात पृथ्वी से शनि की दूरी = ३०× पृथ्वी से सूर्य की दूरी।
सूर्य जिस मार्ग पर चलता हुआ एक वर्ष में आकाश गंगा का चक्कर लगाता हुआ जान पड़ता है, उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं।इसी तरह चन्द्रमा, जिस मार्ग पर पृथ्वी चलता हुआ पृथ्वी की परिक्रमा लगाता है उसको चन्द्र कक्षा कहते हैं। क्रान्तिवृत्त और चन्द्र कक्षा एक ही तल पर नहीं है और सामानान्तर भी नहीं है; इसलिए यह दोनों एक दूसरे से दो बिन्दुओं पर मिलती हुई जान पड़ती हैं जैसे दो उड़ती हुई पतंगों की डोरियां एक दूसरी से बहुत दूर रहती हुई भी एक बिन्दु पर मिलती हुई जान पड़ती हैं और उन पतंगों की गतियों मे भिन्नता होने से यह बिन्दु एक ही दिशा में नहीं देख पड़ता। इन्हीं बिन्दुओं को चन्द्रमा के पात कहते हैं। चन्द्रमा अपनी कक्षा मे चलता हुआ आधे भ्रमण काल तक क्रान्तिवृत्त के उत्तर और आधे भ्रमण काल तक क्रान्तिवृत्त के दक्षिण मे रहता है।
जब वह अपने पात पर पहुँचता है तब या तो वह क्रान्तिवृत्त के उत्तर दिशा में बढ़ता है या क्रान्तिवृत्त के दक्षिण की ओर जाता है।
जब वह पात पर पहुचकर वह उत्तर की ओर जाता है उसे उत्तर पात (Ascending Node) या राहु कहते हैं।
जब पात पर पहुंचकर चंद्रमा दक्षिण की ओल जाता है उसे दक्षिण पात ( Descending Node ) या केतु कहते हैं। जब पूर्णमासी या अमावस्या के समय इन्हीं के पास होता है तब चन्द्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण लगता है, इसलिए यह कल्पना हो गयी ये ग्रहण के कारण है।
कुछ लोग पृथ्वी की छाया की नोक को राहु, एवं चन्द्रमा की छाया की नोक को केतु कहते हैं परन्तु यह भ्रम है और गलत है।। इन पातों के स्थान भी स्थिर नहीं है, वरन पश्चिम की ओर खिसकते हुए जान पड़ते हैं।