June 20, 2021

Nirjala Ekadashi Katha: Significance, Results & To Do List

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°°°°°°°°°°°°°*निर्जला एकादशी माहात्म्य*°°°°°°°°°°°°
सोमवार दिनांक *२१* जून २००२१
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द्वारा→→→ *पद्म पुराण* और *महाभारत*
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ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी की कथा- भीमसेन बोले कि, हे महाबुद्धे पितामह! मेरे वचन को श्रवण कीजिये। युधिष्ठिर, कुन्ती तथा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव हे सुव्रत!ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते। और ये लोग मुझे भी सदा कहते है कि, हे भीमसेन!तुम भी भोजन न करो।तो मैं उन्हें जवाब देता हूँ कि ! भाई मुझे भूखा रहना सह्य नहीं है। दान दूंगा और विधि से भगवान की पूजा भी करुंगा। पर एकादशी व्रत विना ही उपवास, जिस प्रकार हो ऐसा उपाय बताइये।

भीमसेन के इस वचन को सुनकर व्यासजी ने कहा कि, हे भीमसेन! यदि तुमको स्वर्ग प्यारा और नगर बुरा मालूम होता है, तो दोनों एकादशियों के दिन तुम्हें भोजन न करना चाहिए। भीमसेन बोले कि, हे महाबुद्धे पितामह ! मै आपके सामने उत्तर देता हूँ। महाराज ! मै तो एक समय भोजन करके भी नहीं रह सकता तब तो उपवास तो कहाँ हो पायेगा? मेरे पेट मे वृकनाम का अग्नि रहता है। जब मैं बहुत सा भोजन करता हूं तब ही उसकी शान्ति होती है हे महामुने! मै एक उपवास कर सकता हूं। इससे आप मुझे कोई एक उपवास बता दें जिससे मेरा कल्याण हो जाय । व्यास जी बोले कि, हे भीमसेन ! तुमने मुनि के और वेदों में कहे हुए धर्म सुनें हैं। पर वे हे राजन् ! इस कलियुग में नहीं हो सकते। सुख का उपाय जिसमें विशेष खर्च भी न हो न कोई दुख हो पर जिसका फल बड़ा हो। यह सुनकर वह बोले कि, सब पुराणों का सार रुप है उसे मै तुम्हें कहता हूं, एकादशी के दिन दोनों पक्षों में कभी भी भोजन न करें। जो लोग एकादशी के दिन भोजन करते हैं वे नरक के यात्री होते हैं। इस प्रकार व्यास जी वचन सुनकर भीमसेन अश्वत्थपत्र की भाँति काँपने लगा। महाबाहु भीमसेन डरकर यह कहने लगा कि हे पितामह ! मैं उपवास करने मे असमर्थ हूँ क्या करुं इसलिये ऐसा कोई एक व्रत बताइये जिसका बहुत फल हो। व्यास जी बोले कि, वृष या मकर सक्रांति पर जब कि शुक्ल एकादशी प्राप्त हो ,तब ज्येष्ठ मास मे बड़े कष्ट से प्रयत्न के साथ एकादशी का निर्जल उपवास करें। स्नान और आचमन को छोड़कर जलका व्यवहार न करें। क्योंकि उससे व्रत भंग होता है। उदय से दूसरे दिन के उदय पर्यन्त जल का परिहार ही करे रहे। इस प्रकार विना परिश्रम के बाहर एकादशी फल मिल जाता है। द्वादशी के दिन निर्मल प्रातः काल स्नान करे, विधिपूर्वक ब्राह्मणों को जल तथा सुवर्ण देकर सब कृत्य को समाप्त करके ब्राह्मणों के साथ ही जितेन्द्रिय होकर भोजन करे।

हे भीमसेन!इस प्रकार करने से जो पुण्यफल प्राप्त होता है उसे सुनो। वर्ष भर मे जितनी एकादशी होती है उन सबका फल एक ही से प्राप्त हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। इस प्रकार मुझको साक्षात् शंख चक्र गदाधारी केशव भगवान ने कहा है।
एकादशी के दिन शुक्लपक्ष मे ज्येष्ठ मास में पानी से रहित उपवास करके जो फल मिलता है, हे भीमसेन!उसे सुनों। सब तीर्थों मे जो पुण्य और सब दानों मे जो फल होता है, हे भीमसेन!वह इससे मिल जाता है। हे वृकोदर ! वर्षभर मे जितनी शुक्ल एकादशी होती हैं, उन सबका फल इस एकादशी(निर्जला एकादशी) के व्रत से मिल जाता है। हे नरश्रेष्ठ इसमें संदेह नहीं है।धन धान्य देनेवाला पुत्र और आरोग्य को बढ़ा देने वाला, इस व्रत का उपवास होता है। यह मैं तुम्हें सत्य वर्णन करता हूँ।

मरण के समय महाकाय,कराल,कृष्ण पिंगल दण्डपाशधारी और भयंकर यमराज के दूत दृष्टिगोचर नहीं होते। हे नरश्रेष्ठ! एकादशी के उपवास से,पीताम्बरधारी, सौम्य चक्रहस्त,मनकी भाँति दौड़ने वाले, भगवान के सुन्दर दूत विष्णुपुरी को उसे अन्त में ले जाते हैं। इसलिए इसका उपवास जल से रहित होकर सदा ही करना चाहिए। इसके पीछे जलधेनु( ये शास्त्रीय संज्ञा) का दान करके सब पापों से मुक्त हो। यह सुनकर पाण्डवों ने उपवास किया।तब से भीमसेन ने भी इस निर्जला का उपवास किया और इसलिए इसका नाम भीमसेन एकादशी विख्यात हुई है। इसलिये हे राजन ! तुम भी सभी प्रयत्नों के साथ उपवास हरिका पूजन करों जिससे तुम्हारे भी सब पापों का क्षय हो जाय। हे देवेश ! आज मै जलरहित एकादशी का उपवास करुंगा और आपके वासर से दूसरे दिन भोजन करूंगा। ऐसा संकल्प कर उपवास करे।सब पापों के नाश करने के हेतु श्रद्धा और दम से मुक्त होकर व्रत करे। इस प्रकार व्रत करने से स्त्री और पुरुषों के मेरु पर्वत के समान भी पापराशि क्यों न हो क्षणमात्र मे भस्म हो जाती है। यह इस एकादशी का प्रभाव है।
जो धेनु की जलदान वा जलधेनु का दान नही दे सके तो उसको सुवर्ण सहित और वस्त्र सहित घट का दान करना चाहिए। जो घटदान देते समय जल का नियम करता है उसे एक एक प्रहर के अन्दर कोटि कोटि सुवर्ण दान का फल मिलता है। जो इस दिन स्नान, दान,जप, और होम करता है, वह सब अक्षय हो जाता है। इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भोजन करता है वह अपने पापों को खाता है एवं इस लोक मे वह चांडाल और मरने पर दूसरे लोक मे दुर्गति को प्राप्त होता है।

जो लोग ज्येष्ठ की इस एकादशी के दिन उपवास कर दान देतें हैं वे पुण्यात्मा परमपद को प्राप्त होते हैं। इस निर्जला का उपवास करने से पाप मुक्त हो जाता है चाहे वो मनुष्य ब्रह्महत्या,मद्यपापी,चोर,गुरुनिंदक तथा सदा मिथ्यावादी ही क्यों न हो।
हे राजेन्द्र! इस निर्जला एकादशी के दिन विशेष रूप से श्रद्धालु सभी स्त्री और पुरुष को क्या करना चाहिए इसका अब मै वर्णन करता हूँ।

इसमे जलशायी भगवान की पूजा करें; और तैसी ही जलधेनु का दान करें। प्रत्यक्ष गो का दान वा घृतगो का दान करें। हे धर्मज्ञ ! एवं धर्मधारियो मे श्रेष्ठ दक्षिणा से अनेक तरह के मिष्ठान्न भोजन से प्रयत्न के साथ ब्राह्मणों को प्रसन्न करें। ऐसा करने से मोक्षदाता भगवान हरि जल्दी प्रसन्न होते हैं। जो लोग इस उपवास को नहीं करते वे अपने साथ द्वेष करते हैं। जो लोग शान्त और दानी होकर भगवान की पूजा करते हुए रात्रि में जागरण करते हैं एवं निर्जला का उपवास करते हैं वे लोग चाहे पापी या दुराचारी हों,दुष्ट हो, वे अपने अनाचारी सौ कुल के साथ भगवान के धाम पहुंचते हैं। जिन्होंने भी रात मे जागरण करते हुए व्रत किया है इस निर्जला के दिन वे अन्न ,पान,गौ,वस्त्र,शय्या, आसन,कमंडल,छत्र,और जूती जोडे किसी उत्तम ब्राह्मण को अवश्य दें। वह स्वर्ण के विमान मे चढ़कर अवश्य ही स्वर्ग जाता है। जो इसे भक्ति से सुनता है और कहता है वे दोनों ही स्वर्ग मे चले जाते हैं इसमें कोई सन्देह नहीं।

इस प्रकार जो इस पवित्र पापनाशिनी एकादशी को करता है वह सब पापों से निवृत्त होकर विष्णु लोक में जाता है।
यह श्रीमहाभारत और पद्म पुराण की कहीं हुई ज्येष्ठ शुक्ला निर्जला एकादशी का माहात्म्य पूरा हुआ।

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