July 19, 2021

These Devta are the Reason of world suffering: Sleeping Time of Devtas

 343 total views,  2 views today

चातुर्मास्य ( देवताओं का सुषुप्तिकाल )
२० जुलाई २०२१- १४ नवम्बर २०२१
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
आग्नेय एवं ऐन्द्र प्राण देवता नाम से प्रसिद्ध हैं, जबकि आप्य प्राण असुर हैं। आषाढ़ शुक्ल ऐकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार माह पृथ्वी पिण्ड और सौरपिण्ड दोनों आपोमय रहते हैं, यही कारण है दोनों प्राण देवता ( आग्नेय एवं ऐन्द्र ) निर्बल हो जाते हैं तथा आप्य प्राण की प्रधानता होती है ये असुर है अतः इन चार मास निर्ऋति का साम्राज्य रहता है। अब आप कहेंगे कि ये निर्ऋति कौन सी बला है? तो संसार मे दुःख के जो मूलकारण हैं उसके चार देवता हैं।
(१) रुद्र (२) यम (३) वरुण (४) निर्ऋति ।
अब आप समझ गये होंगें की निर्ऋति दुःख की देवता है।

रुद्र के कारण – अनेक तरह के बुखार, महामारी, उन्माद।
यम के कारण- मूर्च्छा, मृत्यु, अंग-भंग आदि रोग।
वरुण कारण – गठिया, शूल,लकवा, गृध्रसी आदि रोग।
निर्ऋति कारण-शोक,कलह,दरिद्रता आदि निर्ऋति कारण
भिखारी, ऊसर भूमि, टूटे घर, फटे एवं जीर्ण वस्त्र, भूख,प्यास, रुदन, वैधव्य, पुत्रसंताप,और कलह यही निर्ऋति की प्रतिमाएँ हैं। इनमे मुख्य दरिद्रता है।

” घोरा पाप्मा वै निर्ऋति ” शतपथ ब्राह्मण ७/२/१/१
तो ये निर्ऋति रहती कहां है ?
इसका घर ज्येष्ठा नक्षत्र है, यह आसुरी कलहप्रिया(निर्ऋति) ज्येष्ठा नक्षत्र रुपी घर से निकलती है। इसमें मनुष्य का पतन है, यही कारण इसे अवरोहिणी एवं अलक्ष्मी भी कहा जाता है।
चातुर्मास्य मे निर्ऋति का साम्राज्य रहता है।

लक्ष्मी कामुक मनुष्यों को सदा इसकी स्तुति करते रहना चाहिए। ध्यान से निदान स्पष्ट है।
प्राण देवता निर्बल रहने से भारतीय सनातन धर्मी कोई दिव्य कार्य जैसे विवाह, यज्ञोपवीत, यात्रा , मुंडन ,गृह प्रवेश और सोलह संस्कार आदि नहीं करता है।
अंत मे देवताओं के सुषुप्ति काल मे ध्यान( पूज्य महर्षि जी द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान) एवं स्तुति करना चाहिए। भूमि मे शयन करना चाहिए एवं सूर्योदय से पहले जरुर उठ जाना चाहिए।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *