
” कामिका” एकादशी ← ( श्रावण कृष्ण एकादशी )
द्वारा श्रीब्रह्मवैवर्त्तपुराण ( ४अगस्त २०२१ बुधवार )
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युधिष्ठिर जी बोले हे गोविंद! श्रावण के कृष्ण पक्ष मे किस नाम की एकादशी होती है? इसका आप वर्णन कीजिए। आपको नमस्कार है। श्रीकृष्ण जी महाराज बोले कि,हे राजन ! सुनो मैं तुम्हें पापनाशक व्रत का वर्णन करता हूं, जिसको पहले ब्रह्मा जी ने पूछते हुए नारद ऋषि को उपदेश दिया था।
नारद जी बोले कि, हे कमलासन! मैं आपसे सुनना चाहता हूं। हे प्रभो! श्रावण के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है उसकी विधि और पुण्यफल क्या होता है! यह कथन कीजिए। उसके यह वचन सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि, हे नारद ! लोकहित की बुद्बि से मैं तुम्हें कहता हूं। कि श्रावण की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ‘कामिका’ है, जिसके सुनने से ही वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन जो मनुष्य शंख चक्र गदाधारी भगवान् विष्णु, माधव , हरि ,श्रीधर , मधुसूदन का पूजन करे और यज्ञ करे , वा ध्यान करे तो उसका पुण्यफल श्रवण कीजिए, उसे न तो गंगा मे होता है, और न काशी में, न नैमिष में होता है और न पुष्कर मे वह फल होता है, जो कृष्ण की पूजा मे मिलता है। केदार में और कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय, वह फल नहीं मिलता, जो कृष्ण पूजन से मिलता है, गोदावरी नदी पर सिंहराशि के वृहस्पति के समय व्यतीपात मे गण्डक में वह फल नहीं होता जो कृष्ण पूजन से होता है, जो मनुष्य समुद्र और जंगल सहित पृथ्वी दान करें अथवा केवल ” कामिका” एकादशी का व्रतमात्र करें तो दोनों के समान फल होता है। जो सामग्री सहित बच्चादेनेवाली गौ को दान करने से होता है। कामिका के व्रत से वही फल मिलता है। जो उत्तम नर श्रावण मे श्रीधर भगवान् की पूजा करे तो उससे सभी देवता, गंधर्व, नाग और किन्नर पूजित हो जाते हैं, इसलिए सब तरह से इस दिन हरि भगवान् को , पाप से डरने वाले सुपुरुषों को यथाशक्ति पूजना चाहिए।
संसार समुद्र में पाप रुपी कीच के अन्दर फंसने वाले मनुष्य का उद्धार करने मे इससे अधिक उत्तम पापहारिणी और कोई दूसरी पवित्र एकादशी नहीं है। इस प्रकार स्वयं भगवान् हरि ने हे नारद! इसका वर्णन पहले किया था, विशेषकर अध्यात्म विद्या में रत रहनेवाले पंडितों को जो फल मिलता है। इस कामिका के व्रत से उससे भी बहुत अधिक फल मिल जाता है।
कामिका के व्रत को करनेवाला मनुष्य रात में जागरण करें, वह कभी भयंकर यमराज को वा दुर्गति को नहीं देखता और न कभी कुयोनि को पाता है।
इस कामिका के व्रत से ही योगी लोग कैवल्य पा चुके हैं, इसलिए इस व्रत को बडे प्रयत्न से करना चाहिए।
जिस प्रकार कमल के पत्ते पानी से लिप्त नहीं होते उसी प्रकार वह मनुष्य भी जो तुलसीदल से भगवान् की पूजा करें कभी पापों मे लिप्त नहीं होता।
एक भार सोना और चार भार चाँदी के देने से जो फल होता है वहीं फल भगवान् पर तुलसीदल चढ़ाने से होता है। रत्नों से मोती, वैदूर्य और प्रवाल आदि से पूजे जाने पर भगवान् उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि ,तुलसी दल पूजने से होते हैं।
जिसने भगवान् की तुलसी दल से पूजा की उसने अपने जन्म की पाप लिपि का संमार्जन कर लिया।
जिसके दर्शन से पाप मुक्त हो,
स्पर्श करने से शरीर को पवित्र करे,
नमस्कार करने से रोगों का नाश करें,
सींचने से यमराज को भगावे,
लगाने से भगवान् के निकट सम्बंध स्थापित करे,
और भगवान् के चरणों में रखने से मोक्षफल को दे;
उस तुलसी को नमस्कार है।
जो दिन रात भगवान् के समीप दीपक रखे उसके पुण्य की संख्या तो श्रीचित्रगुप्त जी भी नहीं जानते।
भगवान् के आगे जिसका दीपक एकादशी के दिन जलता होतो उसके दिल मे रहने वाले पितर लोग अमृत से तृप्त होते हैं घी से या तेल से दीपक जलाकर जो दान करे वह सूर्य लोक मे कोटि कोटि दीपकों के साथ जाता है।
यह महिमा मैंने तुम्हारे सामने कामिका के व्रत की वर्णन की है। इसलिए पापों के नाश करने कुछ वास्ते सब मनुष्यों को करनी चाहिए। यह ब्रह्म हत्या हरने वाली, भ्रूण हत्या को नाश करनेवाली, स्वर्ग में स्थान देने वाली और महापुण्य फल को देने वाली है। श्रद्धा सहित मनुष्य इसके माहात्म्य को सुन करके विष्णु लोक चला जाता है। एवमं सब पापों से छूट जाता है।
यह ब्रह्मवैवर्तपुराण की कही हुई श्रावणकृष्ण एकादशी अर्थात ‘कामिका’ एकादशी की कथा पूर्ण हुई।
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।।