August 30, 2021

Janmashtami Poojan Vidhi | Shri Krishna Shodopchar Poojnam

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जानिये भगवान् श्रीकृष्ण जी का षोडशोपचार पूजन
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(१) आवाहनम्― हे गोलोकधाम के पति! हे लक्ष्मी पति! हे गोविंद! हे दामोदर! हे दीनवत्सल! हे राधापते! हे माधव! हे सात्वतांपते! इस सिंहासन पर विराजमान मेरे सन्मुख होइये।
(२) अथ आसनम् ― पुखराज की जिसकी ऊपर की पीठ, पद्मराग की उर्ध्द पृष्ठ, बहुमूल्य वैदूर्यमणि का जड़ा हुआ कमल जिसमें, बिजली जैसे स्वर्ण के कलश जिसमें उस सिंहासन को हे वैकुण्ठपते! ग्रहण करिये।
(३) अथ पाद्यम् ― निर्मल स्वर्ण के पात्र मे स्थित बिन्दु सरोवर से लाये हुये इस पाद्य को हे लोकेश ! हे जगन्निवास! ग्रहण करिये मै आपके चरण कमल को नमस्कार करता हूँ।
(४) अथ स्नानम् ― केशर, चन्दन, मिले हुये चमेली, केसर के जल से हे यदुपति ! गोविंद! गोपाल! हे तीर्थपाद! आप स्नान कजिये।
(५) अथ मधुपर्क स्नानम्― मध्यान्ह मे सूर्य चन्द्र से हुये, मल को दूर करनेवाले, मिश्री के मिलने से परम मनोहर, इस मधुपर्क को, दर्शन योग्य है पीताम्बर जिनका हे भक्तपति! हे विष्णो! आप ग्रहण करिये।
(६) अथ वस्त्रम् ― हे विभो! सब ओर से देदीप्यमान छूटीं हैं किरणें जिसमें ऐसे अत्यन्त उज्जवल, परम दुर्लभ, आप ही के रचे हुये, कमल की पराग अर्थात केशर जैसा वर्ण जिसका, उस पीताम्बर को ग्रहण करिये।
(७) अथ यज्ञोपवीत ― सुवर्ण जैसी आभावाले पीतवर्ण, वेदमंत्रों से छिड़के और बनाये हुए नैमित्तिक पांच कार्यों मे शुभ यज्ञोपवीत का हे प्रभो! हे यज्ञ ! ग्रहण करिये।
(८) अथ भूषण ― सुवर्ण, रत्न से मयके रचे हुये, मदन की कान्ति के नाश और शोभा के घर प्रातःकालीन सूर्य जैसा जिसका तेज, ऐसे विभूषण को हे सकल लोक के विभूषण ! आप ग्रहण करिये।
(९) अथ गन्ध ― संध्या के चन्द्रमा जैसी शोभा जिसकी, बहुमंगल रुप, केशर ,च़दन कपूर युक्त, अपना मण्डन, ऐसे गंध के चय को हे समस्त भूमण्डल भार के खंडन करनेवाले! ग्रहण कीजिये।
(१०) अथ अक्षत― ब्रह्मावर्त में पूर्व ब्रह्मा से बोये हुये, वेदमंत्रों से विष्णु द्वारा सींचे हुये, रुद्र द्वारा राक्षसों से रक्षा किये हुये, साक्षात अक्षतों को हे भूमन् आप ग्रहण कीजिये।
(११) अथ पुष्प ― मंदार, जातक पारिजात, कल्पवृक्ष, हरिचंदन,इनके पुष्प और तुलसी की नई मंज्जरी जिनमें मिली ,ऐसे पुष्प ग्रहण करिये।
(१२) अथ धूप ― लवंग और चंदन का चूर्ण मिला जिसमें, मनुष्य, देवता, असुर, सबको सुखकारी, तत्काल ही मंदिर को सुगंधित करनेवाले धूप को हे द्वारिकेश!आप ग्रहण करें।
(१३) अथ दीप चौदहअंधकार को हरने वाले, ज्ञान की मूर्ति, मनोहर शोभित है, बत्ती, कपूर, गौ का घृत जिसमें ऐसे देदीप्यमान ज्योति वाले श्रेष्ठ दीपक को हे विश्वदीपक! हे जगन्नाथ! ग्रहण करिये।
(१४) अथ नैवेद्य― छः रसो से युक्त, और रसों से रसीले, यशोदाजी से बनाये हुये, गौ के अमृत से युक्त ,और रुचिकर नैवेद्य को हे नन्द नंदन आप ग्रहण करिये।
(१५) अथ जलं ― हे राधा के वर ! हे भक्त वत्सल! यह गंगोत्री का जल बड़ी कठिनता से लाया गया, अमृत जैसा मीठा, सुवर्ण पात्र मे हिम जैसा शीतल है, उसको हे भक्तवत्सल! आप ग्रहण करिये।
(१६) अथ आचमन ― हे राधापते! हे विरजापते ! हे प्रभों! हे लक्ष्मीपते! हे पृथ्वीपते! हे सर्वपते! हे भूपते! हे दयानिधे! कंकोल, जायफल, मिरच,इनसे सुगन्धित आचमन को ग्रहण करिये।
(१७) अथ ताम्बूलं― जायफल,इलायची, लवंग,और सुपाड़ी का चूर्ण जिसमें रखा, ऐसे मुक्तासुधा खैर सारयुक्त ताम्बूल को ग्रहण करिये।
(१८) अथ दक्षिणा― नाक(स्वर्ग) पाल,और वसुपालो के मुकुटों से वंदित है चरणकमल जिनके हे लोकदक्षवर हे दक्षिणापते! हे प्रभों! हे माधव! यह दक्षिणा ग्रहण करिये।
(१९) अथ आरती― प्रस्फुरित है परम दीप्ति जिसकी और मंगल रुप, गौके घृत मे सनी हैं चौदह बत्तियाँ जिसमें, हे आर्तिहर! हे विशतकीर्ते! उस आरती को ग्रहण करिये।
(२०) अथ नमस्कार― आप अनंत हो ,हजारों हैं मूर्तियाँ जिनकी, हजारों हैं पांव,नेत्र,शिर उरु,भुजा और नाम जिनके, आप पुरुष हो,शाश्वत हो हजारों करोड़ युगों के धारण करनेवाले हो ,हे प्रभों! आपके लिए नमस्कार है।
(२१) अथ प्रदक्षिणा ― जो आपकी प्रदक्षिणा करें, उसकों सब तीर्थों का, यज्ञ, दान, कुआ, बाबड़ी,तलाब, प्याऊ, सदावर्त,आदि सबका फल प्राप्त हो।
(२२) अथ प्रार्थना – हे हरे! मेरे समान तो इस पृथ्वी पर कोई पापी नहीं है, और आप के समान कोई पापहारी नहीं है, ऐसा मानकर हे देव ! हे जगन्नाथ! जैसी इच्छा हो,वैसा मुझको करिये।
(२३) अथ स्तुति ― ज्ञान मात्र सत् असत् से परे ,महत्, निरंतर, प्रशांत, विभव,सम ,परम, दुर्गम दूर हुआ है छल जिनसे, उन परब्रह्म को मैं नमस्कार करता हूं।
(२४) महाभोग लगाये-
(२५) नमस्कारम् ― ध्येयं सदा……सष्टांग नमस्कार करें।
(२६) आरती ― भक्तिभाव से आरती करें।
(२७) प्रभु को नमस्कार करें। शयन या विसर्जन करें।

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