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●●●आश्विन कृष्ण एकादशी●●●
##### ##इन्दिरा एकादशी ######
एकादशी शुरु→०१अक्टूबर २०२१ रात्रि ११:०५ मिनट
एकादशी समाप्त → ०२/१०/२०२१ रात्रि ११:१२ तक
द्वारा ― श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण
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अथ आश्विन कृष्ण एकादशी की कथा- युधिष्ठिर बोले कि, हे भगवन् मधुसूदन! आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और विधि क्या है? इसका मेरे आगे वर्णन करिये।
श्रीकृष्ण जी बोले कि, हे युधिष्ठिर! आश्विन के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा है जिसके व्रत से महापाप भी नष्ट होते हैं। हे राजन! इसकी पापनाशिनी कथा को सावधान होकर सुनो, जिसके प्रभाव से अधोगति को प्राप्त भी पितृगण शुभगति प्राप्त करते हैं।
जिसके श्रवण से वाजपेययज्ञ का फल मिलता है, पहले शतयुग में रिपुओका मारने वाला राजा था। वह अपनी माहिष्मती पुरी में इन्द्रसेन के नाम से विख्यात था। वह अपने राज्य को धर्म और यश से पालन करता था। वह माहिष्मती पुरी का राजा पुत्र,पौत्र,धन धान्य से सम्पन्न और विष्णु भक्ति में लीन रहता था। हे राजन! वह भगवान के मुक्ति देनेवाले नामों का जाप करते हुए अध्यात्म चिंता के ध्यान में अपना समय बिताता था। एक दिन सभा के अंदर सुख से बैठे हुए राजा के सम्मुख आकाश से उतरकर मुनि नारद जी आ पधारे।। उनके आने पर राजा ने उठ हाथ जोड़कर अर्घ विधि से पूजन कर आसन पर बिठा दिया। आराम से बैठ जाने पर मुनि ने राजा से पूंछा कि,हे राजेन्द्र! आप सप्तांग मे कुशल तो है। हे राजन !आपकी धर्म में प्रीति और विष्णु में भक्ति तो है? नारद जी के वचन सुन, राजा ने उत्तर दिया कि, हे देवर्षे! आपकी कृपा से यहां सब कुशल है।आज आपके दर्शन से मेरे समस्त यज्ञ सफल हो गये हैं। हे ऋषिराज!आप अपने यहां पधारने का कारण कृपाकर बताइए, यह सुन देवर्षि ने उत्तर दिया।।
नारद बोले कि हे राजन्! आप मेरी इस आश्चर्य करनेवाली बात को सुनिये कि ,मैं ब्रह्म लोक को एक समय चला गया। धर्मराज का सत्कार पा करके मैं उत्तम आसनपर बैठा। धर्मशील सत्यवान् तो भास्करि यम की उपासना करते हैं। उस धर्मराज की सभा मे मैनें तुम्हारे पुण्यवान पिता को भी किसी व्रत को न करनेवाले दोष से देखा। उसने जो सन्देश कहा है उसको सुनो। इन्द्रसेन नाम का माहिष्मती नगरी का एक विख्यात राजा है। हे ब्राह्मण!उसके आगे जाकर कहना कि ,किसी पूर्व जन्म के पाप से तुम्हारा पिता यमराज की सभा में है। इसलिए हे पुत्र! तुम मुझे इन्दिरा एकादशी का व्रत करके स्वर्ग भेज दे। हे राजन ऐसा सुनकर मैं तुम्हारे पास आया हूँ। पिता की शुभस्वर्ग- गति के वास्ते हे राजन् !आप इन्दिरा के व्रत को करों, जिसके प्रभाव से तुम्हारे पिता स्वर्ग में चले जायेंगे। राजा ने कहा कि हे भगवन्! उस इन्दिरा व्रत को किस पक्ष मे और तिथि में करना चाहिए ,ये सब बातें एवं उसकी विधि कृपाकर मुझसे वर्णन करिये।
नारद बोले कि, हे राजन! मैं इसकी शुभ विधि को तुम्हें कहता हूं कि, आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रातःकाल श्रद्धा युक्त मन से स्नान करे।और मध्याह्न समय में जल के बाहर स्नान करे।श्रद्धा के साथ पितरों का श्राद्ध करे।एक समय भाई जन कर रात में भूमि शयन करे। दूसरे दिन एकादशी के प्रातःकाल मे मुखधोकर दन्तधावन करे।भक्ति भाव से उपवास करने का ,नियम धारण करे कि,मैं आज निराहार रहकर सब भोगों से दूर रहूंगा। मैं कल भोजन करुंगा, इसलिये हे भगवन्! आप मेरी रक्षा करो,मैं आपकी शरण हूँ, ऐसा नियम करके मध्याह्न के समय में शालिग्राम की शिला के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करे, पूज्य ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर भोजन करावे। पीछे चुप होकर बन्धुबान्धवों के साथ स्वयं भोजन करे। इस रीति से हे राजन ! विधिपूर्वक इस व्रत को करने से तुम्हारे पितर लोग विष्णु लोक मे निवास करेंगे। हे राजन! इस प्रकार कहकर मुनि अन्तरध्यान हो गये। राजा ने बताई हुई विधि से रानी और नौकर आदि के साथ उस उत्तम व्रत को किया। हे युधिष्ठिर!इस व्रत के करने पर उस राजा पर स्वर्ग से पुष्प वर्षा हुई। उसका पिता गरुड़ पर चढकर वैकुण्ठ चला गया और राजा इन्द्रसेन भी धर्म से निष्कंटक राज्यकर अपने राज्यभार को लड़के पर रख स्वयं भी स्वर्ग चला गया। यह इन्दिरा व्रत का माहात्म्य तुम्हारे सामने वर्णन करदिया।। उसके पढने सुनने से सब पापों से छूट जाता है। इस लोक में सब भोगों को भोगकर अन्त में विष्णु लोक मे चिरकाल तक निवास करता है।यह श्री ब्रह्म वैवर्त पुराण का कहा हुआ आश्विन कृष्ण इन्दिरा नाम की एकादशी का माहात्म्य पूरा हुआ।।