January 23, 2022

Vedas Lessons Son Duty For Father | Manusya Lok, Dev Lok

 206 total views,  4 views today

पुत्र द्वारा मनुष्य लोक को जीता जा सकता है:-
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
जब पिता यह समझता है कि मैं मरने वाला हूं तो वह पुत्र से कहता है- ” तू ब्रह्म है, तू यज्ञ है, तू लोक है ”
वह पुत्र बदले मे कहता है- मैं ब्रह्म हूं, मै यज्ञ हूं, मै लोक हूं
फिर पिता यह मानने लगता है कि- यह पुत्र मेरे इस भार को लेकर इस लोक से जाने पर मेरा पालन करेगा।

इस प्रकार जाने वाला पिता जब इस लोक से जाता है तो अपने उन्हीं प्राणों सहित पुत्र मे व्याप्त हो जाता है। यदि किसी कोणच्छिद्र अथवा प्रमाद से उस पिता के द्वारा कोई कर्तव्य नहीं किया होता है तो उस सबसे पुत्र उसे मुक्त कर देता है। इसी से उसका नाम “पुत्र” है। वह पिता पुत्र के द्वारा ही इस लोक मे प्रतिष्ठित होता है।जो यज्ञ अब तक तेरे द्वारा किये जाने वाले थे वे अब तेरे द्वारा किये जाने वाले हों। आज से आगे के लिए अध्ययन, यज्ञ,लोकजय सम्बन्धी कर्तव्य का संकल्प तुझे सौप दिया है। यदि पिता का असावधानी से बीच मे कोई कर्तव्य बिना किये(अपूर्ण) ही रह जाता है, तो उस सबका स्वयं अनुष्ठान करते हुए उसकी पूर्ति करके पिता को मुक्त करा देता है। पुत्र चूंकि पूर्ति द्वारा पिता का त्राण करता है इसलिए ‘पुत्र” कहलाता है।
पिता के छिद्र की पूर्ति करके उसका त्राण करता है।
अर्थात अग्नि होत्र आदि रुप दिव्य कर्म करके पुत्र द्वारा मनुष्य लोक को जीता जा सकता है।

कहा गया है कि-
मनुष्य लोक→ पुत्र द्वारा
पितृलोक→ कर्म द्वारा
देवलोक → विद्या द्वारा
जीता जा सकता है।
पृथ्वी लोक― देवता- माता→ वाक (पृथ्वी+अग्नि)
अन्तरिक्ष लोक- पितृगण-पिता→मन(द्युलोक+सूर्य)
स्वर्गलोक- मनुष्य→ प्राण(जल+चन्द्रमा)
आत्मा- वाड़मय,मनोमय,प्राणमय है।
मन+प्राण+वाक- त्रय आत्मा है, जो सत है।
यही पुत्र द्वारा पिता की अमृता है।
आत्मा अजर है, अमर है।
और पुत्र पिता की आत्मा है।
जबकि नाम,रुप,कर्म अनात्मा है।
पिता के प्राण पुत्र मे व्याप्त हो जाते हैं।

मृत्यु श्रमित होकर होकर इन्द्रियों मे व्याप्त हो गया, लेकिन प्राण मे व्याप्त नहीं हो सका था।
सभी इन्द्रियां मृत्यु श्रमित होकर थक जाती है, लेकिन प्राणन व अपानन की कभी निवृत्ति नहीं होता।
प्राण आत्मा की परिछाई है। आत्मा की तरह अमरता है।
जैसे सूर्य प्राण मे से उदित होता है और प्राण मे ही विलीन हो जाता है। ठीक इसी तरह वाक भी प्राण मे विलीन और मन भी प्राण मे विलीन हो जाता है।
यही नही प्राण वायु मे चन्द्रमा और दिशाएं भी मिल जाती है।
आत्मा विजायते पुत्रः कहा जाता है।
यही कारण है पुत्र द्वारा मनुष्य लोक को जीता जा सकता है।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *