February 25, 2022

Vijaya Ekadashi Katha, Vidhi Hindi | Ekadashi Vrat Katha

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फाल्गुन कृष्ण एकादशी कथा एवं माहात्म्य
‘विजया एकादशी’ २६ फरवरी २०२२ शनिवार
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अब फाल्गुन कृष्णा एकादशी की कथा- युधिष्ठिर महाराज बोले कि, हे कृपासिन्धो! वासुदेव! फाल्गुन के कृष्णपक्ष मे कौन सी एकादशी होती है इसको आप प्रसन्न होकर वर्णन कीजिये।
श्रीकृष्ण महाराज जी बोले कि हे राजेन्द्र! फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है उसका वर्णन मैं करता हूँ। उसका नाम “विजया” है क्योंकि उसके करने वालों की सदा विजय होती है। उसके व्रत का माहात्मय सब पापों को हरने वाला है। कमलासन ब्रह्मा जी से नारदजी ने पूछा था, कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष मे विजया नाम की जो तिथि है उसका व्रत हे सुरश्रेष्ठ! कृपाकर वर्णन कीजिये।

ब्रह्मा जी बोले कि, हे नारद ! मैं तुम्हें उसकी पापहारिणी कथा का वर्णन करता हूं उसे श्रवण करो। यह व्रत बहुत प्राचीन काल से चला आता है और पापों को नाश करनेवाला है। मैंने तुमको छोड़कर अभी इसका रहस्य किसी दूसरे को नहीं बतलाया है। यह विजया एकादशी अवश्य ही करनेवाले को जय प्रदान करती है, इसमें संशय नहीं है। महाराज श्रीरामचंद्र जी १४ वर्ष तक सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ तपोवन में जाकर पञ्चवटी मे जब निवास कर रहे थे उस समय महात्मा रामचन्द्र महाराज की तपस्विनी भार्या सीतामाता को रावण ने हर लिया था इस दुःख से भगवान् को बड़ा मोह हुआ। उन्होंने भ्रमण करते करते मरणासन्न जटायु को देखाऔर पीछे जंगल के अन्दर कबन्ध का संहार किया। वह कबन्ध मरते समय अपनी वैसी दशा होने आदि के सब वृत्तांत रामचन्द्र जी को कहकर मृत्यु के वश मे हो गया। इसके बाद सुग्रीव के साथ भगवान की अमिट मित्रता हुई। बन्दरों की सेना रामचन्द्र जी के लिए तैयार की गई। पीछे हनुमानजी ने लंका की अशोक वाटिका मे सीताजी को देखा।वहां रामचन्द्र जी महाराज का परिचय देकर बड़े भारी काम को पूरा किया और वापिस आकर सब समाचार भगवान् को निवेदन किया गया।

इस प्रकार भगवान ने हनुमानजी के वचनों को सुनकर सुग्रीव की सलाह से लंका जाने का विचार किया। बन्दरों के प्यारे भगवान श्रीराम वानरसेना के साथ नदनदीपति समुद्र के किनारे जाकर उसको दुस्तर देखकर बड़े विचार मे पड़ गये। भगवान् ने खिले नेत्रों के साथ अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी से पूंछा कि,भैया यह जलनिधि किस प्रकार कौन से पुण्य से पार किया जा सकता है? इसमें अगाध जल है। बड़ें बड़े भयंकर नाकू आदि जलचरों से भरा हुआ है। इसलिए कोई उपाय नहीं मालूम होता कि,इसको कैसे पार किया जावे? लक्ष्मण जी बोले कि, महाराज! आदिदेव और पुराणपुरुषोत्तम तो आप ही हैं। पर तो भी इस द्वीप के अन्दर बकदाल्भ्य नाम के मुनि यहां से दो कोश की दूरी पर आश्रम मे निवास करते हैं। हे महाराज! इन्होंने अपने जीवन में बहुत से ब्रह्माओं को देखा है। इसलिये हे राजेन्द्र!आप उनके पास चलकर उनसे पूछिये। वे पुराने श्रेष्ठ मुनि हैं, लक्ष्मण जी के इस सुन्दर वचन को सुनकर भगवान दाल्भ्य महामुनि को देखने के लिए चल दिये। वहां रामचन्द्र जी ने मुनिराज को वैसे ही शिर से प्रणाम किया, जैसे देव विष्णु को करते हैं।

मुनिराज ने भी पुराण पुरुषोत्तम भगवान् को मानुषी शरीर धारण करते देख यह पूंछा कि,महाराज! आपका आज कहां से पधारना हुआ? भगवान बोले कि, महाराज!आपकी कृपा से मैं आज राक्षसों को एवं लंका को जीतने के लिए इस समुद्र के किनारे आया हूँ। मैं राक्षसों सहित लंका को जीत आपकी अनुकूलता से जिस तरह इस समुद्र को पार कर सकूँ?ऐसा उपाय हे सुव्रत !मुझे कृपाकर बतलाइये। इसलिये मैं आपके दर्शन करने को यहां आया हूँ। मुनिराज बोले कि, हे राम!मैं आपको बहुत उत्तम पव्रत का उपदेश करुंगा, जिसको करने से एकदम तुम्हारी ही विजय होगी। लंका को तथा उसके राक्षसों को जीतकर तुम बड़ी कीर्ति प्राप्त करोगे। इस कारण एकाग्रमन होकर आप इस व्रत को कीजिए। हे राम! फाल्गुन के कृष्ण पक्ष में विजया नाम की एकादशी होती है, उसके व्रत को करने से तुम्हारी अवश्य विजय होगी। निःसंदेह आप समुद्र को पार करेंगे तथा आपकी वानरसेना भी उसे तैर सकेगी। इसफल के देने वाले व्रत की विधि सुन लीजिए।।

जब दशमी का दिन प्राप्त हो तब बड़ा घड़ा सोने का या चाँदी का या ताँबे या मिट्टी का बनावे और घड़े को वेदीपर जल से भर और पत्ते लगाकर स्थापित करें, उसके ऊपर सप्तधान्य को अथवा यवों को गिरावे। उसके ऊपर नारायण भगवान की स्वर्ण की बनी हुई मूर्ति स्थापित करें।एकादशी का दिन प्राप्त होने पर प्रातःकाल स्नान करें, स्थापित किये हुए निश्चल कुंभ पर गन्धमालाधारण करावे,तथा धूप दीप और अनेक तरह के नैवेद्य और नाना प्रकार के फलों और अनार नारियल से उनकी पूजा विशेष रूप से करे। हे राम! सब दिन बड़ी भक्ति से उस कुंभ के आगे बितावे। उसी के आगे रात जागरण करें। हे राजन ! द्वादशी के दिन सूर्य उदय होने पर, उस कुंभ को किसी जलाशय के निकट नदी या झरने के निकट ले जाकर यथा विधि पूजन करें। पीछे देवता सहित उस कुंभ को किसी वेदपराण ब्राह्मण को दान कर दे तथा और भी महादानों को उसके साथ दे। इस प्रकार से हे राम !अपने सब सेनापतियों के साथ मिलकर यत्न से व्रत को पूर्ण करो; इससे तुम्हारी अवश्य विजय होगी। इस वचन को सुनकर भगवान श्रीराम ने उस व्रत को यथाविधि अनुष्ठान किया और इससे उनकी विजय हुई। हे राजन! इस विधि से जो लोग इस उत्तम व्रत को करते हैं उनकी इस लोक मे जय और परलोक में शुभगति प्राप्त होती है। इसलिए हे पुत्र! विजया व्रत को अवश्य करना चाहिए उसका माहात्म्य सब पापों को दूर करता है, पढ़ने और सुनने से वाजपेययज्ञ का फल प्राप्त होता है। यह स्कन्द पुराण की कही हुई फाल्गुन कृष्णा विजया नाम की एकादशी का माहात्म्य पूरा हुआ।।

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