March 27, 2022

Papmochni Ekadashi Katha Hindi | Ekadashi Vrat Katha

 89 total views,  2 views today

पापमोचनी एकादशी कथा- द्वारा भविष्योत्तर पुराण
२८ मार्च २०२२ सोमवार।

••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
अथ चैत्रकृष्ण एकादशी की कथा- युधिष्ठिर जी बोले कि, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की आमलकी एकादशी की कथा का श्रवण किया। अब चैत्र के कृष्णा एकादशी का क्या नाम है। उसकी विधि और उसका फल क्या है? इसको आप कृपाकर कथन कीजिये। श्रीकृष्ण जी महाराज बोले कि, हे राजन! सुनो मैं तुम्हें पापमोचिनी एकादशी की कथा कहता हूं। जिसको चक्रवर्ती राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से पूंछी थी। मान्धाता बोले कि, महाराज! मैं जगत के कल्याण के लिये सुनना चाहता हूं कि, चैत्रमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम उसकी विधि और उसका फल क्या है? यह सब कृपा करके वर्णन कीजिये लोमश जी बोले कि, हे राजन्! चैत्रमास के कृष्ण पक्ष में पापमोचनी एकादशी होती है! वह पिशाचगति को नाश करती है। हे राजन्! सुनो मै तुम्हें उसकी पापनाशिनी, धर्मदायिनी,सिद्धिप्रदा,शुभ और विचित्र कथा का वर्णन करता हूं।।

प्राचीन समय में अप्सरा मण्डित चैत्ररथनाम के स्थान में वसन्त ऋतु के अन्दर समस्त वनवृक्षों के पुष्प विकसित हो गये। उस स्थान पर गन्धर्वो की कन्याये किन्नरों के साथ रमण करती थी, तथा इन्द्रप्रधान देवता भी वहीं आनन्द भोगकर रहे थे। उस चैत्ररथ से अधिक सुन्दर और कोई दूसरा वन नहीं था,जहां पर मुनि गण अधिक से अधिक तप करते हुए पाये जाते थे। देवताओं के साथ इन्द्र बसन्त ऋतु के आनंद को भोगता था। उस जगह एक मेधावी नाम के मुनिराज भी थे। जिनको मोहित करने के लिये मंजुघोषा नाम की विख्यात अप्सरा ने बीड़ा उठाया, वह उनके भाव को जानकर, उनके भयदा नाम के आश्रम के निकट एक कोश की दूरी पर बड़े मीठे स्वर से सुन्दर वाणी को सुस्वादु बजाने लगी। उस पुष्प और चंदन से लिपटी एवं गाती हुई मञ्जूषा को देखकर विजयाभिलाषी कामदेव भी शिवभक्त मुनीश्वर को। शिवजी के वैर का स्मरण करके उसके शरीर के साथ लिपटकर ध्रुव की धनुषकोटि एवम् कटाक्षों की तीर फेंकने की रस्सी बना। पलकों समेत नयनों के तीरकर उसके कुचों का तम्बू डेरा बना जीतने के लिए चल दिया। मंजूघोषा साक्षात कामदेव की सेना के समान थी पर वह भी मेघावी मूनि को देखकर कामपीड़ित हो गई। यौवन से अपने तरुणांग समूह के द्वारा वे मेधावी मुनि शुक्ल यज्ञोपवीत के साथ दंडधारण कर दूसरे कामदेव के समान मालूम होते थे। मंजूघोषा उस मुनिराज को देखकर काम के वंशगत हो गई थीं इसलिये मंद मंद गाने लगी। मूनिराज भी उस मंजूघोषा को चूड़ियों की एवं वलयों की आवाज से संयुक्त तथा बडते हुए नूपुरों को पहिने हुए और उसकी भावपूर्ण गायन को गाते हुए देख।

सेना सहित कामदेव के बलपूर्वक मोह के वश कर दिये।मंजूघोषा भी मुनि को उस हालत मे देखकर ,अपने हावभावों और कटाक्षों से और भी अधिक मोहित करने लगी,एवं वीणा को नीचे रखकर उस मुनिराज को विशेष करके रिझाने लगी तथा उनके शरीर से लिपट गई। उस मेधावी मुनिराज ने वातवेग से हिलती हुई बेल के समान कंपकपाती हुई उस मंजुघोषा से रमण किया। वह मुनिराज उस वनके स्थान में उसके उत्तम शरीर के मोह मे पड शिवतत्त्व को भूलकर कामतत्व के वशीभूत हो गये। मुनि को उससे भोग करते हुए न दिन का ज्ञान रहा और न रात का । इस प्रकार उसका बहुत सा आचार नष्ट करनेवाला समय योंही बीत गया। मंजूघोषा देवलोक जाने लगी और जाती बार भोग करते हुए उस मुनि से यह कहा कि। हे ब्राह्मण! मुझे अपने स्थान पर जाने की आज्ञा दीजिये। मेधावी ने कहा कि, हे सुन्दरी! तुम आज ही तो सन्ध्या के पहले आई हो। इसलिये प्रातःकाल की सन्ध्या तक तुम मेरे पास और ठहरो। इस प्रकार मुनि के ये वाक्य सुनकर वह मंजूघोषा डर गई।शाप के डर के मारे वह फिर मुनि को प्रसन्न रखने के लिए हे नृपसत्तम ! अनेक वर्षों तक पूर्ववत रमण कराती रही । 57 वर्ष 9 माह और 3 दिन उसको उसके साथ रमण करते बीत गये पर उनके लिए ऐसा मालूम हुआ जैसे आधी रातक्ष। उस मंजूघोषा ने फिर मनुराज से नम्रतापूर्वक कहा कि ,महाराज! मुझे अपने स्थान पर जाने की आज्ञा दीजिये।मेधावी जी ने उत्तर दिया कि ,मेरी बात सुन, अभी तो प्रातःकाल ही हुआ है इसलिए मैं सन्ध्या कर लूँ तबतक तुम यहां बैठो। इस प्रकार भय और आनंद से मुनि के वचन सुनकर कुछ हँसकर उसने जबाब दिया? कि महाराज! आपको मुझपर कृपा करते हुए कितनी सन्ध्या लुप्त हो गई हैं और कितना समय चला गया है यह आप विचार कीजिये।

इस तरह उसकी बात सुनकर वह आँख फाड़कर विचारने लगे। उसने हृदय में ध्यान कर प्रणाम किया ,उसे ज्ञात हुआ कि, मुझे इसके साथ रमण करते हुए 57 वर्ष बीत गये हैं और इसलिए क्रोध से उसकी आंखों से आग निकलने लगी। मंजूघोषा को तपोभंग करने वाले काल के समान देखकर यह विचार किया, दुःख से अर्जित किया हुआ मेरा इतना तप इससे व्यर्थ ही नष्ट हो गया। उसके होठ फड़कने लगेक्षवो घबडा गया। पीछे उसको शाप दिया कि, तू पिशाची हो जा। और कहा कि, हे दुराचारिणी!कुलटे!पापिन! तुम्हें धिक्कार है। यह विचारी मंजूघोषा शाप से दग्ध होकर चुपचाप खड़ी हो गयी। उस मंजूघोषा ने मुनि महाराज की कृपा के वास्ते एवं उस शाप को शांत करने के लिए नम्रतापूर्वक कहा कि, महाराज!शाप को निवृत कीजिये।महात्माओं के साथ सत्संग करने से सप्तमपद से मित्रता होती है। महाराज!मुझे तो आपके साथ निवास करते अनेक वर्ष चले गए। इसलिए हे महाराज!आप कृपाकर मुझको इस शाप से मुक्त कीजिये।मुनि बोले कि,हे भद्रे! शापसे अनुग्रह करनेवाले मेरे वचन सुन।।क्या करुक्ष,तुमने मेरे बड़े भारी तप को इसी तरह नष्ट कर दिया है पर तो भी मैं तुम्हें कृपाकर शापमुक्त होने का उपाय बतलाता हूं सुनो।

चैत्रमास की कृष्ण पक्ष वाली एकादशी सब पापों को नाश करने के कारण पापमोचिनी नाम से विख्यात है। उसका व्रत करने पर हे सुंदरी तुम्हारी पिशाचयोनि का क्षय होगा। ऐसा बोलकर वे मुनि अपने पिता के आश्रम मे चले गये उसको आते देखकर च्यवन ऋषि ने कहा, कि हे पुत्र ! तुमने यह क्या किया, किस वास्ते,अपने सारे पुण्य का क्षय कर डाला है। मेधावी ने उत्तर दिया कि महाराज! मैंने बड़ा पाप कर लिया है। मैने अप्सरा का भोग किया है। इसलिए मुझे प्रायश्चित बतलाइये, जिससे इस पाप का नाश हो। च्यवन जी बोले कि, चैत्रमास की कृष्ण पक्ष में पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से हे पुत्र ! पापराशि का क्षय होता है। पिता के ऐसे वचन सुनकर उसने उस उत्तम व्रत को किया, उसका पाप नष्ट हो गया और फिर से पूर्व वत पुण्यवान हो गया। उस मंजूघोषा ने भी व्रत किया उसके प्रभाव से वह भी पिशाचयोनि से निकलकर दिव्य रुप धारण करती हुई स्वर्ग मे चली गयी। लोमश जी बोले कि, महाराज! इस प्रकार की पापमोचिनी एकादशी का प्रभाव है। जो मनुष्य इस पापमोचनी के व्रत को करते हैं उनका सब पाप क्षीण हो जाता है तथा उसकी कथा को सुनकर और पढ़कर भी गोसहस्र दान का फल मिलता है।
ब्रह्म हत्या, सुवर्ण स्तेय,मद्यपान, गुरुद्वाराभिगमन तक का पाप भी इससे नष्ट होता है।एवं इस व्रत का अनुष्ठान करने से असीम पुण्य का फल प्राप्त होता है।।

यह भविष्यउत्तरपुराण की कही हुयी पापमोचनी नाम की चैत्रकृष्ण एकादशी के व्रत की कथा पूरी हुई।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *