May 2, 2022

Akshaya Tritiya Real Mahatav (Importance) | Must Donate 12 Things List

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अक्षय तृतीया की ज्योतिषीय महत्ता
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अक्षय तृतीया ( वैशाख शुक्ल तृतीया ) को सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपनी अपनी उच्च राशियों में होते हैं।
किसी भी मुहूर्त का बलवान होना सूर्य और चंद्रमा के बलवान होने पर निर्भर करता है। सूर्य और चंद्रमा की शुभता होना प्रत्येक कार्य के लिए आवश्यक है।इनकी शुभता होने पर जो भी कार्य किया जाए,वह अवश्य ही सुविधापूर्ण तरीके से सम्पन्न होता है।
दूसरी बात अक्षय तृतीया में ऐसा क्या है? जो इसे सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त कहा जाता है। अक्षय तृतीया या आखा तीज एक अत्यंत और प्रचलित नाम है। इसका एक कारण यह भी है कि अक्षय तृतीया को विवाह के अबूझ मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है। विवाह के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान के अवतारों में परशुराम अवतार इसी तिथि को हुआ था।
इस वर्ष २०२२ मे अक्षय तृतीया ( वैशाख शुक्ल तृतीया ) दिनांक ०३/०५/२०२२ को मंगलवार को हैं। तृतीया सूर्योदय कालीन रहेगी । अक्षय तृतीया सभी शुभ मंगल कार्यों के लिए अबूझ मुहूर्त या शुभ दिन माना जाता है। एवं इस वर्ष न तो गुरु अस्त है और न ही शुक्र अस्त है अतः देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा, जलाशयों की प्रतिष्ठा, विवाह, अग्याधान,गृह-प्रवेश, मुण्डन, अभिषेक, यज्ञोपवीत संस्कार आदि कार्य कर सकते हैं।

विवाह के समय सूर्य और चंद्रमा दोनों के बली होने पर यानि कि अपनी अपनी उच्च राशियों मे होने पर – एकार्गल,उपग्रह,पात,लत्ता, जामित्र,कर्तरि और शुभ ग्रहों के उदयास्त का दोष उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे कि सूर्य उदय होने पर अंधकार का नाश हुए जाता है। इसका अर्थ है कि सूर्य और चंद्रमा के बली होने पर विवाह मे शुभ ग्रहों ( गुरु व शुक्र ) के बालत्व और वृद्धत्व अवस्था का दोष मान्य नहीं होता है। परन्तु अस्तगंत अवस्था के लिये जरूर विचार करना होगा।
अक्षय तृतीया सनातन धर्मावलंबियों का प्रधान त्योहार है, इस दिन किये हुए दान और स्नान, जप,होम आदि सभी कर्मो का फल अनंत होता है सभी अक्षय हो जाते हैं।

अक्षय तृतीया को नर-नारायण, परशुराम, और हयग्रीव अवतार हुए थे। इसी दिन त्रैता युग का भी आरंभ हुआ था। इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नता के लिए जल कलश,पंखा, खड़ाऊं, छाता,सत्तू,ककड़ी, खरबूजा आदि फल शक्कर तथा मिष्ठान घृतादि पदार्थ ब्राह्मण को दान करने चाहिए।। इसी दिन बद्रीनाथ के दरवाजे खुलते हैं अतः बद्रीनारायण जी को मिस्री तथा भीगी चने की दाल का भोग लगाना चाहिए। भगवान कृष्ण को चंदन चटाने का विशेष महत्व है। नर-नारायण के निमित्त सत्तू, परशुराम के लिए कोमल ककड़ी और हयग्रीव के लिए भीगी हुई चने की दाल अर्पण करें।

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