
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं
यम मातरिश्र्वानमाहुः ।।
एक ही सत रुप परमेश्वर का विद्वजन विभिन्न गुणों एवं स्वरुपों के आधार पर ,विविध प्रकार से वर्णन करते हैं।
विष्णु पुराण ― 14 अध्याय ―01 श्लोक
कूरान शूरा ― 04 अध्याय ― 03 श्लोक
ऋग्वेद मे ― 164 अध्याय― 46 मंत्र
यजुर्वेद में ― 32 अध्याय ― 03 मंत्र
एक ही सत के शुरुआती 16 रुप:-
१- परात्पर भाव ( परिणात्यात्मा)
२- अव्यय ( आलम्बनात्मा)
३- अक्षर ( नियन्तात्मा )
४- क्षर (परिणात्मा )
५- शान्तात्मा ( प्राण )
६- महानात्मा ( मन)
७- विज्ञानात्मा ( वाक)
८- प्रज्ञानात्मा ( अन्न)
९-प्राणात्मा ( अन्नाद )
१०- शरीरात्मा ( अग्नि)
११- हंसात्मा ( वायु)
१२- दिव्यात्मा ( इन्द्र अग्नि )
१३- दिव्यात्मा ( इन्द्र वायु)
१४-प्राज्ञ ( कर्मात्मा )
१५- चिदात्मा ( ज्योतिर्मय/इष्टदेव)
१६-शुक्रात्मा ( श्री/उर्जा)
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लगातार……….