January 14, 2019

अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति – भाग 12

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सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृति यान्ति मामिकाम्।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यसम।
प्रकृ स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः।
भूतग्राममिमं कृत्स्न्मवशं प्रकृतेर्वशात्।। गीता९/७-८
हे कुन्ती नंदन अर्जुन, कल्प की समाप्ति पर सम्पूर्ण प्राणी मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं और कल्प के प्रारंभ में मैं फिर उनकी रचना करता हूँ। प्रकृति के वश में होने से परतंत्र हुये इस सम्पूर्ण प्राणि समुदाय की मै अपनी प्रकृति को वश में करके बार बार रचना करता हूँ।
1- १.५ घन्टा = ०१ बेला।
2- ०३ घंटा = ०१ प्रहर।
3- ०८प्रहर = ०१ दिन।
4-०७ दिन = ०१ सप्ताह।
5- ०८प्रहर= २४ घंटे।
6- १५ दिन = ०१ पक्ष ।
7- ०२ पक्ष = ०१ मास।
8- १२ मास = ०१ संवत्सर।
9- ६० संवत्सर = ०१ षष्ठी।
10- ४३,२०,०००वर्ष= ०१ महायुग।
11- ७१ महायुग = ०१ मन्वन्तर।
12- १४ मन्वन्तर = ०१ कल्प।
13- १००० महायुग = ०१ कल्प।
14- ४३,२०,०००× १००० वर्ष= ४ अरब,३२ करोड़ वर्ष।
“कल्पो ब्राह्ममहः प्रोक्तं। “
( ब्रह्मा जी के दिन को कल्प भी कहते हैं।)

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