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सूर्य सिद्धांत के मध्यमाधिकार नामक अध्याय मे दीर्घ काल बोधक ईकाइयों को इस प्रकार परिभाषित किया हैः
मनुष्यों के लिए जो १२ सौर मासों का एक वर्ष होता है, वह देवताओं का एक दिन होता है। जो देवताओं का दिन होता है वहीं असुरों की रात होती है और जो देवताओं की रात होती है वह असुरों का दिन कहलाता है। यही देवता/ असुरों के अहोरात्र का 60×6 दिव्य वर्ष कहलाते हैं। इन बारह हजार दिव्य वर्षों का चतुर्युग होता है, जिसकी अवधि सौर वर्षोंं में 43,20,000 वर्ष होती है। इसमें संध्या और संध्यांश के वर्ष भी मिले हुए हैं।एक चतुर्युग में सत्य, त्रेता, द्वापर, और कलियुग होते हैं, जिनके मान धर्म के चरणों के अनुसार बताए गये हैं।
प्रत्येक युग के छठे भाग के समान उसकी दोनों संध्याए होती हैं।71 महायुगों का एक मन्वन्तर होता है जिसके अंत मे सतयुग के समान संध्या होती है। इसी संध्या में जल प्रलय होती है। संधि सहित 14 मन्वन्तरों का एक कल्प होता है, जिसके आदि मे भी सत्य युग के समान एक सन्धया होती है, इसलिए एक कल्प मे 14 मन्वन्तर और 15 सतयुग के समान संध्याए होती हैं। इस प्रकार 1000 महायुग का एक कल्प होता है जो ब्रह्मा के एक दिन के समान है।इतने ही षभय की ब्रह्मा की एक रात होती है, जिसमें सृष्टि का लय हो जाता है।
01 कल्प = 14 मन्वन्तर + 15 सत्ययुग के समान संध्याए।
= 14× 71 महायुग+ 15 सत्ययुग
= 994 महायुग+ 15×4/10 महायुग
= 994+6 महायुग
= 1000महायुग।
=43,20,000×1000वर्ष
=4,32,00,00,000=4अरब,32करोड़ वर्ष
= ब्रह्मा का एक दिन होता है।
कल्पों ब्राह्ममहःप्रोक्त।
एक कल्प मे जो 14 मन्वन्तर होते हैं उनके नाम :-
१- स्वायम्भुव
२- स्वारोचिष
३-औत्तम
४-तामस
५- रैवत
६- चाक्षुष
७- वैवस्वत ( वर्तमान में चल रहा है)
८- सावर्णि
९- दक्षसावर्णि
१०-ब्रह्म सावर्णि
११-धर्म सावर्णि
१२-रुद्र सावर्णि
१३-देव सावर्णि
१४- इन्द्र सावर्णि
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