January 15, 2019

अव्यक्त से व्यक्त की उत्पत्ति-भाग 17

Loading

आत्मा आत्मकृपा साध्य है :-
♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀♀
कठोपनिषद प्रथम अध्याय, द्वितीय वल्ली,२३ वा मंत्र
~~~~~~~||~~~~~~~~~~||~~~~~~~~
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुना श्रुतेन
यमेवैष वृणुते तेन लभ्य
स्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनु ँँ ् स्वाम ।।
यह आत्मा वेद अध्ययन द्वारा प्राप्त होने योग्य नहीं है, और न अधिक श्रवण से ही प्राप्त हो सकता है। यह (साधक) जिस (आत्मा) का वरण करता है, उस (आत्मा) -से ही यह प्राप्त किया जा सकता है। उसके प्रति यह आत्मा अपने स्वरूप को अभिव्यक्त कर देता है।तात्पर्य यह है कि केवल आत्म लाभ के लिए ही प्रार्थना करने वाले निष्काम पुरुष को आत्मा के द्वारा ही आत्मा की उपलब्धि होती है।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *