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मास :- जब चन्द्रमा सूर्य से 360 डिग्री आगे पहुंच जाता है तो एक मास कहलाता है।
मास 4 प्रकार के होते हैं।
(अ) चन्द्र मास :- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से कृष्णपक्ष की अमावस्या तक के चन्द्र मास को अमान्त मास कहते है।
(ब) कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को पूर्णिमांत कहते हैं।
कुल चन्द्र मासों की संख्या 12 है।
१- चैत्र
२- वैशाख
३- ज्येष्ठ
४- आषाढ़
५- श्रावण
६- भाद्रपद
७- आश्विन
८- कार्तिक
९- मार्गशीर्ष
१०- पौष
११- माघ
१२- फाल्गुन ।
(2) सौरमास :- एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक के समय को सौरमास कहा जाता है। अतः एक राशि में संचरण का समय सौरमास हुआ।
(3) सावन मास :- इसका प्रारंभ किसी भी दिन से माना जा सकता है ,यह 30 दिन का होता है।
(4) नक्षत्र मास :- चन्द्रमा द्वारा 27 नक्षत्रों मे संचरण पूरा कर लेने की अवधि को नक्षत्र मास कहते हैं।
विशेष – ३२ मास १६ दिन ०४ घटी बाद एक अधिमास/मलमास या पुरुषोत्तम मास होता है।
सौरमास= 30.5 दिन
सौरवर्ष= 366 दिन
चान्द्रमास= 29.5 दिन
चान्द्रवर्ष = 354 दिन
सौर वर्ष― चान्द्र वर्ष ~ 366-354=12 दिन
अब 5वर्ष में अंतर ~ 366×5-354×5= 60 दिन
अतः5चान्द्र वर्षों में दो अधिमास होते हैं।
अर्थात 2वर्ष 8 माह बाद एक अधिमास होगा।
अतः लगभग इतने समय बाद एक चन्द्र मास को बढ़ाकर सौर वर्ष में उसका समन्वय किया जाता है।