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हमारे गुरुदेव
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परम ब्रह्म परमात्मा जो है उसे हम पा सकते है, हा ब्रह्म मे पा सकते है ,ब्रह्म क्या है ये समग्रता(Totality) है।
ब्रह्म एक है, जो स्मृति का बना है, यहां समझने की बात है कि ब्रह्म तो एक है पर ये कई की स्मृति रखता है। अतः एक मे अनेक है इसका मतलब एकता मे विविधता है, ये कई मे एक है, अर्थात है तो एक परन्तु अनेक की याद के साथ।
ब्रह्म एक है स्मृति के बिना, ये भी होने का एक तरीका है। और दूसरी तरफ एक होने मे कई की स्मृति है, विशेष बात यह है कि यहां कई नहीं हैं केवल एक है,
छान्दोग्योपनिषद मे कहा है “एकम अद्वितीयम् ब्रह्म, नेहानास्तिकिंचन” Brahm is one only without second,there is no diversity whatsoever.
यहां ब्रह्म एक ही है दूसरा कोई नहीं है, और यह जो ब्रह्म है स्मृति का बना है।इसको कहते हैं निर्गुण निराकार ब्रह्म गैर योग्य समग्रता, ठीक ऐसा ही सगुण साकार ब्रह्म अर्थात योग्य ब्रह्म है जो अनिवार्य रुप से सभी की स्मृति रखता है या सब जानता है।
यह एक को दो बनाता है, यह भी जानता है कि दो से मिलकर एक बना है।
यह स्मृति तत्व की स्मृति है जो कि एक मे दो बनाता है, और यह स्मृति उन दोनों के बीच की है, स्मृति दोनों के बीच एक संबंधकारक है, जो एक को स्वभाव के द्वारा सक्रिय बनाता है, तो कैसे दो मे एक है, तीन मे एक है, यहा एक और दो सूत्र द्वारा गुथे हुए हैं।
तो यहां एक निर्गुण निराकार ब्रह्म, दूसरा सगुण साकार ब्रह्म, एवं तीसरा वह सूत्र जिससे ये बंधे हुये हैं स्मृति ,ये भी तीसरा ब्रह्म है , यह तीसरा ब्रह्म दो को जोड़ता है इसीलिए यह संबंधक भी ब्रह्म है,
जानते हैं इस ब्रह्म को क्या कहते हैं ,नहीं न ? तो जान जाईये इसे कहते हैं “आत्मा “।
आत्मा ही आ से मा तक और मा से आ की यात्रा करती है। ये निर्गुण निराकार ब्रह्म और सगुण साकार ब्रह्म के बीच सूत्र है धागा है ,कनेक्टर है , ये बुद्धि है। बुद्धि की क्षमता है
यहां “आ” आत्मा है और “मा” स्मृति है।
यह आत्मा भी ब्रह्म है।
अब तीन हो गये, पहला निर्गुण निराकार ब्रह्म, दूसरा सगुण साकार ब्रह्म, तीसरा आत्मा ब्रह्म ( स्मृति ब्रह्म)
लगातार…………….